नाहन में ईमाम हुसैन की याद में निकाला ताजिया जुलूस, रियासतकालीन परंपरा आज भी कायम

मुहर्रम गम और मात्तम का महीना माना जाता है। इसलिए किसी प्रकार की खुशी नहीं मनाई जाती।

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नाहन : ऐतिहासिक शहर नाहन में रविवार को मुहर्रम पर ताजिया जुलूस निकाला गया, जिसमें बड़ी संख्या में शहर के मुस्लिम समुदाय के लोगों ने हिस्सा लिया और हजरत ईमाम हुसैन की शहादत को याद किया।

यहां मुहर्रम को लेकर खास बात यह है कि शहर में शिया नहीं, बल्कि सुन्नी समुदाय मुहर्रम मनाता है। देशभर में शिया समुदाय ही मुहर्रम पर जुलूस का आयोजन करता है, लेकिन रियासत काल से चली आ रही परंपरा के मुताबिक नाहन में सुन्नी समुदाय मुहर्रम मनाता आ रहा है।

इस दौरान शहर के अलग-अलग 4 मोहल्लों से 4 ताजिये निकाले गए, जो शाम के वक्त कच्चा टैंक स्थित ऐतिहासिक जामा मस्जिद पहुंचे। ताजिया जुलूस के दौरान सुन्नी समुदाय के लोगों ने मर्सिया पढ़ते और मातम कर हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद किया।

नसीम मोहम्मद दीदान ने बताया कि मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर के पहले माह का नाम है। इस माह की पहली तारिख से इस्लामिक नव वर्ष आरम्भ होता है। मुस्लिम समुदाय इस माह को भौ नव वर्ष के रूप में मनाते हैं।

उन्होंने बताया कि मुहर्रम की 10 तारीख को ईराक के कर्बला नामक स्थान में हज़रत ईमाम हुसैन इस्लाम की रक्षा और मानवता की सेवा करते करते अत्याचारी, अन्यायी अयोग्य, बेइंसाफी शासक अजीद के खिलाफ इंसाफ की लड़ाई लड़ते लड़ते कर्बला के युद्ध में 72 साथियों सहित उनकी 4 वर्षीय बेटी शबीना और 6 महीने का बेटा हज़रत अली असगर ने भी शहादत का जाम पिया।

मुहर्रम महीने की 10 तारीख हज़रत ईमाम हुसैन की शहादत का दिन कयामत तक याद ताजा करता रहेगा। यह युद्ध एक अत्याचारी जुल्म और बे-इंसाफी के खिलाफ नैतिक युद्ध था।

ऐतिहासिक शहर नाहन में रियासत काल सैकड़ों वर्षों से शिया मुसलमानों की परम्परा सुन्नी मुस्लिम समुदाय अंजाम देते आ रहा है, जिसमें शहर के सभी धर्मों के लोग सम्मलित होकर भाग लेते हैं।

हिंदुस्तान में यह एक अनोखी मिसाल है जो पूरे देश में सम्प्रदायिक सद्भावना की सुदृढ़ता, आपसी मित्रता व शान्ति का पैगाम देती है। मुहर्रम गम और मात्तम का महीना माना जाता है। इसलिए किसी प्रकार की खुशी नहीं मनाई जाती। चमक-धमक वाले कपड़े व श्रृंगार की चीजों से परहेज किया जाता है।