भू-स्थानिक शिक्षा में नाहन कॉलेज की बड़ी उपलब्धि : इसरो के साथ मिलकर तीन उन्नत प्रशिक्षण कार्यक्रमों का शुभारंभ

भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान संस्थान (IIRS) देहरादून के सहयोग से आउटरीच कार्यक्रम के अंतर्गत 3 उन्नत प्रशिक्षण कार्यक्रमों की शुरुआत की। इन कार्यक्रमों का शुभारंभ IIRS के निदेशक डॉ. आर.पी. सिंह ने किया, जिसमें कॉलेज से कुल 222 प्रतिभागियों ने नामांकन किया है।

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नाहन : पीजी कॉलेज नाहन के भूगोल विभाग ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल करते हुए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान संस्थान (IIRS) देहरादून के सहयोग से आउटरीच कार्यक्रम के अंतर्गत 3 उन्नत प्रशिक्षण कार्यक्रमों की शुरुआत की। इन कार्यक्रमों का शुभारंभ IIRS के निदेशक डॉ. आर.पी. सिंह ने किया, जिसमें कॉलेज से कुल 222 प्रतिभागियों ने नामांकन किया है।

भूगोल विभाग के सहायक प्राध्यापक एवं IIRS-ISRO आउटरीच प्रोग्राम के समन्वयक डॉ. जगदीश चंद ने बताया कि पहला कार्यक्रम रिमोट सेंसिंग, ज्योग्राफिक इन्फॉर्मेशन सिस्टम (GIS) और ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) 25 अगस्त से 21 नवंबर 2025 तक आयोजित किया जा रहा है, जिसमें 109 प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं।

इसे भू-स्थानिक शिक्षा की रीढ़ माना जाता है, क्योंकि यह छात्रों को उपग्रहों, ड्रोन और हवाई सेंसरों के माध्यम से पृथ्वी अवलोकन, भूमि उपयोग, वनस्पति, मिट्टी और जलवायु परिवर्तन की निगरानी का प्रशिक्षण देता है। GIS के एकीकरण से नक्शा निर्माण, विश्लेषण और निर्णय लेने की क्षमता विकसित होगी, वहीं GNSS (GPS) सर्वेक्षण, नेविगेशन और आपदा प्रबंधन को और सुदृढ़ करेगा।

भविष्य में यह प्रशिक्षण विद्यार्थियों को सटीक कृषि, स्मार्ट सिटी विकास, वानिकी प्रबंधन, बाढ़ जोखिम मानचित्रण और वास्तविक समय नेविगेशन जैसी चुनौतियों से निपटने में सक्षम बनाएगा।

दूसरा कार्यक्रम रिमोट सेंसिंग और डिजिटल इमेज एनालिसिस 25 अगस्त से 19 सितंबर 2025 तक आयोजित किया जा रहा है, जिसमें 13 प्रतिभागी शामिल हैं। यह विशेष पाठ्यक्रम उपग्रह चित्रों की प्रोसेसिंग और व्याख्या की तकनीकें सिखाता है, जिनमें डिजिटल एल्गोरिद्म, पैटर्न रिकॉग्निशन और स्पेक्ट्रल डाटा का प्रयोग करके भूमि आवरण वर्गीकरण, वनों की कटाई, फसल स्वास्थ्य और शहरी विस्तार जैसे पर्यावरणीय रुझानों का सटीक आकलन किया जाता है।

भविष्य में यह तकनीक जलवायु परिवर्तन, हिमनदों के पिघलने, समुद्र स्तर वृद्धि, जैव विविधता ह्रास और मौसम परिवर्तन की निगरानी में अहम भूमिका निभाएगी। साथ ही खनन, ऊर्जा अन्वेषण, अवसंरचना और रक्षा जैसे उद्योगों में भी इसका व्यापक उपयोग होगा, जिससे विद्यार्थियों को पृथ्वी विज्ञान, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डाटा साइंस के अंतः विषय कौशल प्राप्त होंगे।

तीसरा कार्यक्रम रिमोट सेंसिंग और समुद्री प्रक्रियाओं के लिए न्यूमेरिकल ओशन मॉडलिंग 25 से 29 अगस्त 2025 तक आयोजित हो रहा है, जिसमें 100 प्रतिभागियों ने नामांकन किया है। यह पाठ्यक्रम महासागरों के अध्ययन पर केंद्रित है, जिनका पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान है।

उपग्रह आधारित सेंसरों से समुद्री सतह का तापमान, लवणता, धाराएं और क्लोरोफिल की सांद्रता मापी जाती है और न्यूमेरिकल मॉडलिंग के जरिए मानसून, चक्रवात और एल-नीनो जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जाता है।

भारत जैसे विशाल तटीय देश के लिए यह प्रशिक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे तटीय क्षेत्रों की आपदा तैयारी, मत्स्य संसाधन प्रबंधन, समुद्री प्रदूषण की निगरानी और जलवायु विज्ञान अनुसंधान में मदद मिलेगी।