निवर्तमान अध्यक्ष शैलेंद्र कालरा ने प्रशासन की कार्यप्रणाली पर दागे सवाल
नाहन : सिरमौर प्रेस क्लब के चुनाव को लेकर विवाद बढ़ता ही जा रहा है. शनिवार को एसडीएम नाहन द्वारा जारी निर्देशों को नजरअंदाज करते हुए पत्रकारों के कुछ तथाकथित समूह द्वारा अवैध तरीके से चुनाव संपन्न करवाया गया. इस चुनाव में कथित बाहरी पत्रकारों की मौजूदगी पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं.
सूत्रों के मुताबिक, अध्यक्ष पद के लिए राकेश नंदन और महासचिव पद के लिए प्रताप सिंह ने नामांकन दाखिल किया था. बावजूद इसके कार्यकारिणी को सर्वसम्मति से चुने जाने का दावा किया गया, जो संदेह के घेरे में है. चुनाव की प्रक्रिया को लेकर पत्रकारों के बीच असंतोष साफ नजर आ रहा है. खासकर जब राज्य स्तर पर फर्जी पत्रकारों के खिलाफ अभियान जारी है. अब देखना होगा कि प्रशासन इस पूरे मामले पर क्या रुख अपनाएगा और क्या कोई ठोस कार्रवाई इस मामले में की जाती है.
सिरमौर में फर्जी पत्रकारों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है, जिससे पत्रकारिता की साख पर सवाल उठने लगे हैं. चंद सोशल मीडिया पर सक्रिय पत्रकारों ने अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए ऐसे हथकंडे अपनाए हैं, जिससे असली पत्रकारों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
उधर, निवर्तमान अध्यक्ष शैलेंद्र कालरा ने इस पूरे घटनाक्रम पर कड़ा ऐतराज जताते हुए कहा कि महज एक सोशल मीडिया पेज बनाकर लोग खुद को पत्रकार घोषित कर रहे हैं. एसडीएम के निर्देश की अवहेलना यह साफ दर्शाती है कि निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए नियमों को दरकिनार किया जा रहा है.
उन्होंने कहा कि फर्जी पत्रकारों के इस समूह में 80 प्रतिशत तथाकथित ऐसे पत्रकार शामिल हैं, जिनके पास न कोई डिग्री है न डिप्लोमा. महज जनता को गुमराह करने के लिए ऐसे लोग खुद पर पत्रकार का तमगा लगाए बैठे हैं. कुछ ऐसे भी हैं जो वर्षों पहले मीडिया समूहों से किनारा कर चुके हैं, लेकिन अब भी पत्रकार का टैग लगाए हुए हैं. इतना ही नहीं पत्रकारिता की धौंस जमाकर अधिकारियों को भी गुमराह किया जा रहा है.
इसी के चलते शनिवार को प्रशासन की आदेशों की अवहेलना भी की गई. शासन द्वारा जांच के लिए एक माह का समय दिया गया था, लेकिन इस तथाकथित फर्जी समूह ने आनन-फानन में अपनी कार्यकारिणी की भी घोषणा कर के प्रशासन के मुंह पर तमाचा जड़ा है.
उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में सिरमौर के डीसी सुमित खिमटा को 2 फरवरी को लिखित रूप से पूरे मामले से अवगत करवाया गया था, लेकिन 20 फरवरी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. हैरानी की बात यह है कि चुनाव वे पत्रकार करवा रहे थे, जिनका पत्रकारिता से कोई लेना देना नहीं है. बावजूद इसके प्रशासन ने चुप्पी साधे रखी.