धौलाकुआं : चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के प्रसार शिक्षा निदेशालय ने जून 2025 माह के पहले पखवाड़े में किए जाने वाले मौसम पूर्वानुमान संबंधित कृषि कार्यों को लेकर एडवाइजरी (Kisan Advisory) जारी की है, जो किसानों के लिए लाभप्रद साबित होगी।
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कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर (धौलाकुआं) के प्रभारी एवं प्रधान वैज्ञानिक डा. पंकज मित्तल ने कहा कि अधिक लाभ के लिए किसान उन्नत कृषि तकनीक को अपनाएं। उन्होंने एडवाइजरी के मुताबिक जिला सिरमौर के किसानों का मार्गदर्शन किया है। उन्होंने कहा कि जहां धान की नर्सरी की बिजाई नहीं हुई है, वहां जून के पहले सप्ताह तक बिजाई की जा सकती है। नर्सरी बिजाई से पहले बीज को बैविस्टिन 2.5 ग्राम/प्रति किलोग्राम से उपचार कर लें।
खरपतवार नियंत्रण के लिए करें छिड़काव
डा. मित्तल ने बताया कि धान में खरपतवार नियंत्रण के लिए ऑक्साडाईजोन (रोनस्टार) 3 लीटर/हेक्टेयर या ब्यूटाक्लोर (मैचटी) 3 लीटर/हेक्टेयर का छिड़काव 800 लीटर पानी में घोलकर बिजाई के 48 घंटों के भीतर करें। शुष्क विधि द्वारा लगाई गई नर्सरी में खरपतवारों के नियंत्रण के लिए ब्यूटाक्लोर (मचौटी) का 1.5 लीटर/हेक्टेयर बिजाई के 2 दिन बाद छिड़काव करें। घास प्रजाति के खरपतवारों के नियंत्रण के लिए बाइस्पाईरीबैक 10 ई.सी. (नोमनीगोल्ड) 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर सीधे बिजाई व रोपाई के 25 से 30 दिन पर छिड़काव करें।
पुड्डलेड राइस के लिए करें ये काम
मच्च (पुड्डलेड राइस) किए गए खेत में अंकुरित बीजों द्वारा की गई सीधी बिजाई में 2 दिन के बाद ब्यूटाक्लोर प्लस सेफनर 3 लीटर/हेक्टेयर या प्रेटिलाक्लोर प्लस सेफनर 1.5 लीटर/हेक्टेयर या 8-12 दिन के अंदर पाइराजोसल्फयूरान ईथायल 250 ग्राम/ हेक्टेयर का स्प्रे करें। अन्यथा बुवाई के 7 दिन बाद सेफनर के बिना प्रीटिलाक्लोर का प्रयोग करने से धान में खरपतवारों पर प्रभावी नियंत्रण होता है। रोपाई वाले धान में खरपतवार नियंत्रण के लिए रोपाई के चार दिन बाद सेफनर के साथ प्रीटिलाक्लोर 800 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें।
श्री विधि में बीज की मात्रा लगती है कम
श्री विधि या एसआरआई विधि (सिस्टम आफ राइस इंटेंसीफिकेशन) धान रोपाई की अनुमोदित विधि है। इसमें बीज की मात्रा कम लगती है और पैदावार अधिक मिलती है। अधिक कीमत वाले संकर धान (एचआरआई-152) की खेती के लिए विशेषकर उपयोगी है। इसमें 15-18 दिन की नर्सरी की रोपाई की जाती है। रोपाई जून के दूसरे पखवाड़े में की जाती है। उखाड़े गए पनीरी की रोपाई एक घंटे के अंदर ही की जानी चाहिए। कतार एवं पौधे की आपस में दूरी 20 सेंटीमीटर रखते हुए एक स्थान पर एक ही पौधा लगाया जाता है। पौध रोपाई करते समय जड़ सीधी रखें। खेत में रोपाई के बाद 2 से 3 सेंटीमीटर पानी 5 दिन तक खड़ा रहना चाहिए।
इस विधि से मक्की की अधिक उपज करें प्राप्त
मक्की की अधिक उपज प्राप्त करने के लिए कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर व पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर अंतर रखना चाहिए। एक हेक्टेयर बिजाई के लिए 20 किलोग्राम बीज पर्याप्त है। मक्का की फसल में सभी प्रकार के खरपतवारों पर प्रभावी नियंत्रण के लिए बुवाई के 20 दिन बाद टेम्बोट्रियोन 120 ग्राम प्रति हेक्टेयर सर्फेक्टेंट के साथ का छिड़काव करें या मक्की की फसल में खरपतवार की 2-3 पत्ती अवस्था पर टोप्रामेजोन 25.2 ग्राम प्रति हेक्टेयर प्लस एट्राजीन 750 ग्राम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें।
अदरक, हल्दी, अरबी, जिमीकंद की इन किस्मों का करें चयन
प्रदेश के निचले एवं मध्यवर्ती पर्वतीय क्षेत्रों में अदरक, हल्दी, अरबी और जिमीकंद की बिजाई का उचित समय चल रहा है। बिजाई के लिए उन्नत किस्म अदरक की-हिमगिरी’ ‘सोलन गिरी गंगा’, हल्दी की पालम पिताम्बर और पालम लालिमा, अरबी की स्थानीय किस्में एवं जिमीकंद की पालम जिमीकंद-1 का चयन करें। अदरक, हल्दी व अरबी की बिजाई के लिए स्वस्थ, 30-50 ग्राम वजन व 2-3 आंखों वाले कंदों का ही प्रयोग करें। 156 किलोग्राम इफको (12ः32ः16) मिश्रण खाद, 85 किलोग्राम यूरिया व 40 किलोग्राम ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश/हेक्टेयर बिजाई के समय खेतों में डालें। बिजाई के बाद मल्च के रूप में गोबर खाद (100 क्विंटल/हेक्टेयर) या सूखी पत्तियां (50 क्विंटल/हेक्टेयर) मिट्टी पर बिछा दें।
भिंडी की इन किस्मों की करें बिजाई
मध्यवर्ती पर्वतीय क्षेत्रों में भिंडी की सुधरी प्रजातियों जैसे हिम पालम भिंडी-1, सोलन अधिराज, पालम कोमल, पी.-8, अर्का अनामिका, संकर पंचाली की बिजाई करें। बिजाई के समय भिंडी में 100 क्विंटल/ हेक्टेयर गोबर खाद, 156 किलोग्राम इफको (12ः32ः16) मिश्रण खाद, 60 किलोग्राम यूरिया व 50 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश और फ्रासबीन में 200 क्विंटल/हेक्टेयर गोबर खाद, 310 किलोग्राम इफको (12ः32ः16) मिश्रण खाद और 27 किलोग्राम यूरिया खाद/हेक्टेयर खेतों में डालें।
सब्जियों में निराई-गुड़ाई करें
भिंडी व फ्रासबीन में लाइन की दूरी 45-60 और पौधे की दूरी 15-20 सेंटीमीटर रखें। अगेती फूलगोभी की तैयार पौध की खेतों में 45 व 30 सेंटीमीटर की दूरी पर रोपाई करें। रोपाई से पूर्व 250 क्विंटल/हेक्टेयर गोबर की खाद, 235 किलोग्राम 12ः32ः16 मिश्रण खाद, 150 किलोग्राम यूरिया एवं 54 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति हेक्टेयर खेतों में डालें। प्रदेश के उंचे पर्वतीय क्षेत्रों में खेतों में लगी हुई सब्जियों में निराई-गुड़ाई करें और नत्रजन (40-50 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर) खेतों में डालें।
मक्की : क्षेत्रफल एवं उपज की दृष्टि से प्रदेश की महत्वपूर्ण अनाज की फसल है। यह फसल उत्तम चारे और उत्तम किस्म के साइलेज बनाने के लिए उपयुक्त है। अफ्रीकन टॉल एवं देसी किस्म के बीज 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से केरा विधि से बिजाई करें। गुणवत्ता चारा प्राप्त करने के लिए 75 प्रतिशत अनुमोदित बीज मात्रा चरी और 25 प्रतिशत अनुमोदित बीज मात्रा बाजरा को मिलाकर बिजाई करें।
फसलों का ऐसे करें संरक्षण
डा. मित्तल ने बताया कि मक्की की फसल में कटुआ कीट व सफेद सुंडी के नियंत्रण के लिए अच्छी गली सड़ी गोबर की खाद का उपयोग करें। जिन क्षेत्रों में इन कीटों की अधिक समस्या हो, वहां पर बीज दर थोड़ी अधिक रखें। इन कीटों के नियंत्रण के लिए 2 लीटर क्लोरोपाइरीफॉस 20 ई.सी. नामक दवाई को 25 किलोग्राम रेत में मिलाकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से बिजाई करने से पहले खेत में मिलाएं।
राजमाश के बीच को करें उपचारित
जिन क्षेत्रों में राजमाश की बिजाई करनी हो, वहां पर बिजाई से पहले राजमाश के बीज को बैविस्टीन 2.5 ग्राम/किलोग्राम बीज नामक दवाई से उपचारित करें। बीज का उपचार करने से राजमाश की फसल में बीज जनित बीमारियों से बचाव हो सकता है।
इन सब्जियों का भी ऐसे रखें ध्यान
टमाटर, बैंगन व भिंडी आदि सब्जियों में फल छेदक कीटों के नियंत्रण के लिए 750 मिलीलीटर साइपरमेथ्रिन 10 ई.सी. 750 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर का छिड़काव करें। कद्दूवर्गीय सब्जियों में लाल भृंग नियंत्रण के लिए मैलाथियान- 50 ई.सी. (1 मिलीलीटर/ लीटर पानी ) और डाऊनी मिल्डयू एवं अन्य बीमारियों से बचाव के लिए 7-10 दिन के अंतराल पर डाइथेन एम-45 (25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) के घोल का छिड़काव करें।
कृषि अधिकारियों से बनाए रखें संपर्क
डा. मित्तल ने किसानों से आह्वान किया कि अपने क्षेत्रों की भौगोलिक और पर्यावरण परिस्थितियों के अनुसार अधिक एवं अतिविशिष्ठ जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर एवं कृषि व उद्यान अधिकारी से संपर्क बनाए रखें। अधिक जानकारी के लिए कृषि तकनीकी सूचना केंद्र (एटीक) 01894-230395 से भी संपर्क किया जा सकता है।