नाहन : डॉ. यशवंत सिंह परमार मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल नाहन को आखिर कब ब्लड कंपोनेंट सेपरेटर मशीन (blood components separator machines) की सुविधा उपलब्ध होगी. ये बात शहर के युवाओं की जुबां पर है. खासकर ऐसे युवा जो रोजाना मरीजों के लिए रक्तदान कर कई अनमोल जिंदगियां बचाने में जुटे हैं. बड़ी बात ये भी है कि मेडिकल कॉलेज नाहन का ब्लड बैंक दूसरे अस्पतालों में भी खून की कमी को पूरा कर रहा है लेकिन यहां ब्लड कंपोनेंट सेपरेटर सुविधा आज तक उपलब्ध नहीं हो पाई है. ऐसे में गंभीर रोगियों को आज भी प्लेटलेट्स और प्लाजमा के लिए आईजीएमसी शिमला, पीजीआई चंडीगढ़ या फिर निजी अस्पतालों चक्कर काटने पड़ रहे हैं. वहीं युवाओं की ओर से उपलब्ध करवाए जा रहे खून का पूरा उपयोग भी नहीं हो पा रहा है.
बता दें कि ड्रॉप्स ऑफ होप सोसायटी सिरमौर ने ब्लड कंपोनेंट सेपरेटर यूनिट यहां स्थापित करने के मुद्दे को हर मंच पर उठाया. विधायक से लेकर मंत्री और मुख्यमंत्री से इसकी मांग रखी जा चुकी है. बताया जा रहा है कि इसके लिए कुछ अरसा पहले एनएचएम से 52 लाख रुपए का बजट भी जारी हुआ, बावजूद इसके न तो मशीन खरीद हुई और ना ही इस प्रोजेक्ट की स्थापना को लेकर कोई गति पकड़ी. इसको लेकर रक्तदान करने वाले युवाओं में भारी रोष पनप रहा है.

हर प्लेटफॉर्म पर सरकार से उठाई जा चुकी मांग
ड्रॉप ऑफ होप सोसायटी सिरमौर के संचालक ईशान राव ने कहा कि समूह के सदस्यों की ओर से मांग के अनुसार खून उपलब्ध करवाया जा रहा है. यहां ब्लड कंपोनेंट सेपरेटर मशीनें न होने से प्लाजमा और प्लेटलेट्स के लिए मरीजों को चंडीगढ़ व शिमला भटकना पड़ रहा है. पिछले दिनों डेंगू के चलते मरीजों को प्लेटलेटस में कमी की समस्या से जूझना पड़ा. सोसायटी के युवा मरीजों को हर समय खून उपलब्ध करवा रहे हैं, लेकिन सेपरेटर यूनिट न होने के कारण मरीजों को अन्य स्वास्थ्य संस्थानों का रुख करना पड़ रहा है.
उन्होंने कहा कि मेडिकल कॉलेज को खुले इतना समय होने के बाद भी यहां ब्लड कंपोनेंट सेपरेटर सुविधा न होना निराशाजनक है. कुछ समय पहले इसके लिए 52 लाख रुपए मंजूर हुए थे लेकिन प्रबंधन की ओर से दिलचस्पी न दिखाए जाने से सारा पैसा लैप्स हो गया. मेडिकल कॉलेज नाहन में ग्रामीण इलाकों समेत जरूरतमंद लोग इलाज के लिए पहुंचते हैं. इसकी यहां बेहद जरूरत है. इसके स्थापित होने से मरीजों को इसका लाभ मिलेगा. उन्होंने मांग दोहराते हुए कहा कि विभाग और सरकार यहां जल्द यह सुविधा प्रदान करे.
ऐसे काम करता है ब्लड कंपोनेंट सेपरेटर
दरअसल खून में लाल रक्त कोशिकाएं, प्लेटलेट्स और प्लाजमा सहित अन्य कई जीवन रक्षक घटक होते हैं. ब्लड कंपोनेंट सेपरेटर के माध्यम से प्रयोगशाला में इन्हें अलग-अलग किया जाता है. एक यूनिट खून से लाल रक्त कोशिकाएं, प्लेटलेट्स, प्लाजमा, कार्वे घटक निकाले जाते हैं. ऐसे में मरीज को जरूरत के अनुसार ये घटक दिए जा सकते हैं. इसके न होने का सबसे अधिक परेशानी गर्भवती महिलाओं को उठाना पड़ रहा है. डिलीवरी के दौरान महिलाओं में प्लेटलेट्स कम होने और प्लाजमा की जरूरत रहती है.
ऐसे मरीजों को ज्यादा जरूरत
थैलेसीमिया के मरीजों को लाल रक्त कणिकाएं (आरबीसी) की जरूरत होती है. डेंगू के मरीजों को प्लेटलेट्स चढ़ाए जाते हैं. इस मशीन से खून से प्लेटलेट्स अलग किए जाते हैं. बर्न केस के मरीजों को बचाने के लिए प्लाजमा की जरूरत होती है. इसके साथ साथ एड्स के मरीजों को श्वेत रक्त कणिकाएं (डब्ल्यूबीसी) की जरूरत होती है. यह मशीन खून से डब्ल्यूबीसी को अलग करने में भी कारगर साबित होती है.
क्या कहते है मेडिकल सुपरिटेंडेंट
डॉ. वाईएस परमार मेडिकल कॉलेज नाहन के सीनियर मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. अमिताभ जैन ने बताया कि ब्लड कंपोनेंट सेपरेटर मशीनें काफी महंगी है. इसके लिए करीब एक से डेढ़ करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान जरूरी है. इसमें चार तरह की मशीनें लगाई जाती हैं. एनएचएम के माध्यम से बजट मिलना है. इसके लिए विभाग के उच्चाधिकारियों लिखा गया है. बजट उपलब्ध होने के बाद ही इसे यहां स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू हो सकेगी.