नाहन : कभी वो भी दौर था जब चाय का प्याला महज 12 आने यानी 75 पैसे में मिलता था। समय बदला और आज यही चाय 12 से 15 रुपये प्रति कप पहुंच गई है।
अधिकतर लोगों के घरों और दुकानों में ये चाय गैस और इंडेक्शन पर ही पकती है, मगर इस दौर में आज भी एक ऐसी चाय है, जिसका स्वाद पुराने लोग पत्थर के कोयले की भट्ठी में ढूंढते हैं। इसी स्वाद का जायका आज भी ऐतिहासिक शहर नाहन के दिल्ली गेट के बस स्टोपेज के समीप पिछले 5 दशकों से लगातार महक रहा है।
इस चाय की चुस्की के लिए न केवल ड्राइवर व कंडक्टर, बल्कि आने-जाने वाले लोग भी अपने कीमती पलों को यहां आकर भूल जाते हैं। अपनी 60 साल की उम्र में भी पिछले लगातार 47 वर्षों से बिना रुके लोगों को इसी कोयले की भट्ठी पर पकी चाय का स्वाद नाहन के पवन कुमार उर्फ पौना भाई, जिन्हें लोग प्यार से पंडित जी भी कहते हैं, परोस रहे हैं।
सुबह 5:00 बजे पहली बस के पहुंचने से पहले पवन कुमार की भट्ठी पत्थर के कोयले के ताप से तप उठती है। जहां बस की इंतजार में खड़े यात्री बर्बस चाय की उस महक की ओर खींचे चले आते हैं। बड़ी बात ये है कि पंडित जी की चाय महंगाई के इस दौर में भी 10 रुपये की है। उनका मुस्कुराता हुआ चेहरा इस चाय के स्वाद को और बढ़ा देता है।
दरअसल, पवन कुमार को ये विरासत अपने पिता कश्मीरी लाल से मिली थी। नाहन के दिल्ली गेट पर नगर परिषद की दुकान में अपना टी स्टाल चलाकर पवन कुमार 1978 से चाय बेचकर अपना परिवार पाल रहे हैं। उन्होंने आज भी चाय के दाम नहीं बढ़ाए हैं। चाय के अलावा प्याज के पकौड़े, ब्रेड स्लाइस और मट्ठी ही उनकी आजीविका का मुख्य साधन है।
आधुनिकता की चकाचौंध से वह आज भी कोसों दूर हैं। जहां आज बच्चा-बच्चा एंड्रायड फोन का इस्तेमाल करना सीख चुका है, वहीं पवन कुमार ने आज तक मोबाइल अपने पास नहीं रखा। एंड्रायड तो दूर की-पैड फोन भी उन्होंने नहीं रखा है। इसी वजह से वह आज तक डिजिटल पेमेंट की तरफ भी नहीं बढ़े। उनकी दुकान पर आज भी कैश पर ही चलती है।
पवन कुमार की ईमानदारी की मिसाल भी लोग अक्सर देते हैं, चूंकि उनकी दुकान पर बस यात्री अपना सामान रख कर बाजार की तरफ निकल जाते हैं। इस बीच लोगों को यह चिंता नहीं होती कि उनका सामान सुरक्षित नहीं रहेगा।
हमेशा सिंगल कमीज में दिखते हैं पवन
मौसम चाहे सर्दी का हो या फिर बरसात या गर्मी का। पवन कुमार सिर्फ कमीज-पेंट में दिखते हैं। उन्हें जानने वालों की मानें तो पवन ने आज तक स्वेटर नहीं पहनी। इसका कारण ये भी है कि उन्हें दिनभर कोयले की भट्ठी के पास खड़ा होना पड़ता है। इस वजह से सर्दी में भी वह गर्म वस्त्र नहीं पहनते।
पवन कुमार बताते हैं कि उनके पिता ने दिल्ली गेट के समीप ये दुकान 1974 में नगर परिषद से किराये पर ली थी। कुछ वर्ष उनके पिता कश्मीरी लाल दुकान चलाते थे। इसके बाद उन्होंने दुकान को संभाला। उस समय वह 12 आने में चाय बेचते थे। 1979 तक चाय के यही दाम रहे।
1984 में चाय 2 रुपये की हुई। इसके बाद 1990 में उन्होंने 5 रुपये की चाय की प्याली बेची। 2001 में चाय के दाम बढ़े जो 10 रुपये हुए। तब से लेकर आज तक वह इसी रेट में चाय का प्याला बेच रहे हैं।
उन्होंने कहा कि दूसरी दुकानों पर चाय के रेट 15 रुपये तक भी हैं, लेकिन उन्होंने अपने रेट नहीं बढ़ाए। मसालेदार चाय में वह आज भी लौंग, इलायची, दाल चीनी और अदरक का टेस्ट लोगों को देते हैं।
नाहन के अमरपुर मोहल्ला के रहने वाले पवन कुमार ने बताया कि वर्ष 1985-86 तक कोयला नाहन के सुभाष डिपो से डेढ़ रुपये प्रति किलो मिलता था। इसके बाद वह अंबाला से पत्थर वाला कोयला मंगवाते आ रहे हैं, जिसके रेट 5 रुपये से आज 30 रुपये प्रति किलो पहुंच गए हैं।
उन्होंने बताया कि चार भाइयों में वह दूसरे नंबर पर हैं। आज सभी अपना-अपना परिवार चला रहे हैं। इस दुकान के सहारे वह अपने परिवार में पत्नी सहित चार बेटियों और एक बेटे का पालन पोषण कर रहे हैं।
एक बेटी की शादी हो चुकी है। जबकि, दो कालेज में पढ़ रही हैं। एक अन्य बेटी अक्सर बीमार रहती है, जो घर पर अपनी मां का हाथ बटाती है। बेटा सातवीं कक्षा में पढ़ रहा है।
वह सुबह 5 बजे अपनी दुकान खोल देते हैं। करीब 16 घंटे वह दुकान पर चाय बेचकर अपनी आजीविका चला रहे हैं। सर्दियों में चाय से ठीक आमदनी हो जाती है, लेकिन गर्मियों में कम लोग ही चाय का स्वाद चखते हैं।
उनका यही प्रयास रहा कि कम दामों में लोगों को अच्छी चाय का स्वाद दें। उन्होंने सिर्फ अपने पिता की विरासत को ही आगे बढ़ाया। इसके अलावा कोई दूसरा कार्य भी नहीं किया।