असंख्य श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र मां ठारी देवी मंदिर, पूरी होती हैं सारी मनोकामनाएं

यह आलौकिक मंदिर जिला मुख्यालय नाहन से वाया पांवटा साहिब, शिलाई लगभग 160 किलोमीटर, शिमला से वाया चौपाल लगभग 110 किलोमीटर दूर स्थित है।

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जिला सिरमौर का गिरिपार क्षेत्र अपनी धार्मिक आस्था एवं विशिष्ट पूजा पद्धति के लिए जाना जाता है। इस क्षेत्र की सांचा विद्या विश्व विख्यात है, जिसमें दैविक पाशों द्वारा भूत, वर्तमान और भविष्य की सही सही गणना की जाती है।

शिलाई उपमंडल की रोनहाट उप तहसील के कोटी बोंच में स्थित माता ठारी देवी मंदिर यहां के असंख्य श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। माता यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामनाएं पूरी करती हैं। यह आलौकिक मंदिर जिला मुख्यालय नाहन से वाया पांवटा साहिब, शिलाई लगभग 160 किलोमीटर, शिमला से वाया चौपाल लगभग 110 किलोमीटर दूर स्थित है।

यह देवी नव चण्डी दुर्गा का अष्टभुज अवतार, कोटी बोंच क्षेत्र के 12 गांवों की अराध्य मां हैं और अति प्राचीन गौरवशाली इतिहास को समेटे हुए है। 19वीं सदी के प्रारंभ में राजगढ़ क्षेत्र के गांव सिंघौली से राजपूत खश सिंगटोऊ परिवार इस गांव में बसे थे। यहां बसने के बाद उनके परिवार में आगे काफी समय तक कोई संतान नहीं हुई।

अन्ततः गांव के बुजुर्गों ने पण्डित-पुरोहितों का रूख किया। जिला के गिरिपार की अति प्राचीन सांचा विद्या और अन्य गणनाओं के माध्यम से देवदोष व भूमि दोष का पता चला। नजदीकी गांव थुम्बाडी गांव के प्रख्यात पण्डित ईशरू ने गणना और मंत्र-तंत्र शक्ति द्वारा उपचार किया, जिससे परिवारों में बच्चे होने शुरू हो गए।

पण्डित ईशरू को इन लोगों ने अपना पुरोहित बनाया। उसे काली माता ने स्वप्न में दर्शन दिए और गांव में थाती माटी में प्रचण्ड शक्ति की स्थापना करने का निर्देश दिया। माता की भविष्यवाणी के फलस्वरूप ग्रामीणों ने कोटी बोंच के आंगन क्वीथल में ठारी माता के स्थल का शुभारंभ किया। उसी समय वहां सरयाण खानदान के किसी बुजुर्ग को माता की खेल आई और निर्माण कार्य पूरा होने की भविष्यवाणी की।

चिणाई यहीं से निकले पत्थरों से की गई। विशेष शैली में नव चण्डी के स्वरूप में नौ पुर का निर्माण किया गया, जिसमें एक ही दरवाजा है। यह दरवाजा विशेष पूजा अर्चना के लिए खुलता है, जिसमें पूजन पुरोहितों के जुगतावत और पाशी राजपूतों के द्वारा लिम्बरगान लोक वाद्य यंत्रों और नृत्य गायन के साथ सम्पन्न होता है।

यह देवी महिषासुर मर्दिनी का रूप है, जिसकी पूजा पद्धति पहाड़ी परम्परागत हंसाण, बढवाण और गढवाण, ठारे का पुजारी आदि हैं। ठारी मां की डोली में सरयाण खानदान से होना चाहिए।

यहां दैनिक पूजा ब्रह्म मुहूर्त में स्नान व दीप प्रज्वलन के साथ प्रारम्भ होती है। दैविक प्रक्रियाओं में कुनेड पूजन, मात्रा स्थापन, ग्रह स्थापन, जाग पूजा, चौंसठ योगिनी पूजा, रक्षा सूत्र बन्धन, थाति परिक्रमा, पूर्णाच और ग्रह विसर्जन आदि हैं।

इन क्रियाओं के साथ साथ समय समय पर ठारी माता की तृप्ति एवं सन्तुष्ठि हेतु यज्ञ हवन भी किया जाता है। इसमें मुख्य यजमानों के साथ साथ तीन नम्बरदार यानी सियाणों की उपस्थिति में विद्वान ब्राह्मणों और पुरोहितों द्वारा मंत्रोच्चारण किया जाता है। व्यवस्था संचालन के लिए विधानों के अनुसार खदराई वस्तियां पुरोहित, थाति का स्थाणा, खलाण का स्थाणा निर्धारित की गई हैं।

लगभग एक शताब्दी के बाद माता की प्रेरणा से सन् 2011 में इस मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य शुरू किया गया और नवीन काष्ठ शिल्प कला से सुसज्जित भव्य मंदिर का निर्माण कार्य मई 2022 में पूर्ण हुआ। नव चण्डी विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा तीन नम्बरदारों नारायण सिंह, हीरा सिंह और भूप सिंह के सान्निध्य में वैदिक ऋचाओं द्वारा आचार्य टीका राम व मदन पराशर ने सम्पन्न की।

आचार्य टीका राम शर्मा यहां के पुरोहित और शिक्षा विभाग में जाना पहचाना नाम हैं। वह बताते हैं कि यहां प्रत्येक 12 साल बाद शांत महायज्ञ का आयोजन किया जाता है, जिसमें असंख्य श्रद्धालु भाग लेते हैं। ममतामई मां यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मनोकामना पूर्ण करती हैं।

लेखक : पंडित सुभाष चंद्र शर्मा
गांव खदरी, बिक्रम बाग (नाहन)