नाहन|
Agriculture Advisory Sirmaur : हिमाचल प्रदेश सहित जिला सिरमौर में किसान मौसम पूर्वानुमान ही अनुसार कृषि कार्य करें. चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर प्रसार शिक्षा निदेशालय ने जनवरी 2025 महीने के प्रथम पखवाड़े में किए जाने वाले कृषि कार्यों से संबंधित एडवाइजरी जारी की है, जो किसानों के लिए लाभप्रद साबित होगी.
कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के प्रसार शिक्षा निदेशक डा. विनोद शर्मा और कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर (धौलाकुआं) के प्रभारी एवं प्रधान वैज्ञानिक डा. पंकज मित्तल ने किसानों को सलाह देते हुए कहा कि गेहूं की फसल में खरपतवारों पर 2-3 पत्तियां आ गई हो, तो इस अवस्था में दोनों प्रकार के खरपतवार नियंत्रण के लिए वेस्टा (मेटसल्फयूरॉन मिथाइल 20 डब्ल्यू.पी. प्लस क्लोडिनाफॉप प्रोपार्जिल 15 डब्ल्यू.पी.) 16 ग्राम प्रति 30 लीटर पानी के हिसाब से खेतों में छिड़काव करें.
केवल चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार नियंत्रण के लिए 2, 4-डी की 50 ग्राम मात्रा को 30 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें. छिड़काव के लिए फ्लैट फैन नोजल इस्तेमाल करें. गेहूं के साथ चौड़ी पत्ती वाली फसल की खेती की गई हो, तो 2, 4-डी का प्रयोग न करें.
इस सूरत में रोग महामारी का रूप कर सकता है धारण
डा. मित्तल ने कहा कि किसान गेहूं की फसल में पीला रतुआ बीमारी आने के प्रति भी सचेत रहे. इस रोग में गेहूं के पत्तों पर पीले रंग के छोटे-छोटे दाने सीधे धारियों में प्रकट होते है. दूसरी ओर पत्तों में धारीदार पीलापन दिखाई देता है. बीमारी के जल्दी प्रकट होने पर पौधे बौने रह जाते हैं और पैदावार पर प्रतिकूल असर पड़ता है. यदि मौसम ठंडा व नम रहे और थोड़ी वर्षा हो जाए, तो यह रोग महामारी का रूप धारण कर सकता है.
ऐसे क्षेत्रों में किसानों को सतर्क रहने की जरूरत
बीमारी के कारण गेहूं के दाने या तो बनते ही नहीं है या छोटे व झुर्रीदार बनते हैं. फिर भी जहां पर किसानों ने पी.बी.डब्ल्यू-343, पी.बी.डब्ल्यू-520, पी.बी.डब्ल्यू-550, एच.पी.डब्ल्यू-184, एच.पी.डब्ल्यू-42, एच.एस.-240, एच.एस.-295, एच.एस.-420, यू.पी.-2338, एच.डी. 2967 या डब्ल्यू.एच.-711 किस्मों की बिजाई की है. ऐसे क्षेत्रों में किसानों को बीमारी के प्रति सतर्क रहने की आवश्यकता है.
लक्षण दिखने में क्या करें
किसानों को सलाह दी गई कि ऊपर बताए गए लक्षणों को देखते ही गेहूं की फसल में टिल्ट-प्रापिकोनाजोल 25 ई.सी. या फोलिक्योर टेबुकोनाजोल 25 ईसी. या बेलाटॉन 25 डब्ल्यू.पी. का 0.1 प्रतिशत घोल यानी 30 मिलीलीटर रसायन 30 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें और 15 दिन के अंतराल पर इसे फिर से दोहराएं.
आलू की 4 किसानों का करें चयन, अपना ये विधियां
सब्जी उत्पादन करने वाले किसानों को सलाह दी गई कि मध्यवर्ती क्षेत्रों में आलू की बुआई के लिए सुधरी किस्मों जैसे कुफरी ज्योति, कुफरी गिरिराज, कुफरी चंद्रमुखी व कुफरी हिमालिनी इत्यादि का चयन करें. बुआई के लिए स्वस्थ, रोग रहित, साबुत या कटे हुए कंद, वजन लगभग 30 ग्राम, जिनमें कम से कम 2-3 आंखें हो, का प्रयोग करें. बुआई से पहले कंदों को डाईथेन एम-45 (25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी) के घोल में 20 मिनट तक उपचारित करें. कंद को छाया में सुखाने के बाद अच्छी तरह से तैयार खेतों में 45-60 सेंटीमीटर पंक्तियों की दूरी एवं कंद को 15-20 सेंटीमीटर के अंतर पर पंक्ति में मेढ़े बनाकर बिजाई करें.
छिड़काव करते समय खेत में होनी चाहिए नमी आलू बिजाई से पहले 20 क्विंटल गोबर की खाद के अतिरिक्त 20 किलोग्राम इफको (12:32:16) मिश्रण खाद और 5 किलोग्राम यूरिया प्रति बीघा अंतिम जुताई के समय खेतों में डालें. आलू की रोपाई के एक सप्ताह बाद खरपतवार नियंत्रण के लिए ऑक्सीफ्लुरफेन 6 ग्राम या 3 से 4 सप्ताह बाद मेट्रीब्यूजीन 30 ग्राम प्रति 30 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें. छिड़काव करते समय खेत में नमी होनी चाहिए. इसके अलावा आलू के 5 प्रतिशत अंकुरण होने पर खरपतवार नियंत्रण के लिए ग्रामेक्सॉन या पैराक्वेट 90 मिलीलीटर प्रति 30 लीटर पानी का छिड़काव किया जा सकता है.
प्याज और अन्य सब्जियों के लिए सलाह
प्रदेश के निचले व मध्यवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों में प्याज की पौध की रोपाई 15-20 सेंटीमीटर पंक्तियों और 5-7 सेंटीमीटर पौध से पौध की दूरी रखते हुए करें. रोपाई के समय 200-250 क्विंटल गोबर की खाद के अतिरिक्त 235 किलोग्राम 12ः32ः16 मिश्रण खाद 105 किलोग्राम यूरिया और 35 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश प्रति हैक्टेयर खेतों में डालें. रोपाई के तुरंत बाद फुहारे से हल्की सिंचाई करें. इसके अतिरिक्त खेतों में लगी हुई सभी प्रकार की सब्जियों जैसे फुलगोभी, बंदगोभी, गांठगोभी, ब्रॉकली, चाईनीज बंदगोभी, पालक, मेथी, मटर व लहसुन इत्यादि में निराई-गुड़ाई करें और नत्रजन 40-50 किलोग्राम यूरिया प्रति हैक्टेयर खेतों में प्रयोग करें. साथ ही आवश्यकतानुसार सिंचाई करें.
फसलों का ऐसे करें संरक्षण
डा. मित्तल ने बताया कि सरसों वर्गीय तिलहनी फसलों और गोभी वर्गीय सब्जियों में तेल या एफिड का प्रकोप होने पर मैलाथियान 50 ई.सी. 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें. अधिक प्रकोप होने पर 15 दिन के अंतराल पर फिर से छिड़काव करें. ध्यान रखें कि छिड़काव के बाद कम से कम एक सप्ताह तक सब्जियां न तोड़ें. जिन क्षेत्रों में भूमि में पाए जाने वाले कीटों जैसे कि सफेद सुंडी, कटुआ कीट व लाल चींटी इत्यादि का प्रकोप होता है, वहां पर आलू की बिजाई से पहले क्लोरपाइरिफॉस 20 ई.सी. 2 लीटर रसायन को 25 किलोग्राम रेत में मिलाकर प्रति हैक्टेयर क्षेत्र की दर से खेत में मिलाएं.