ये गेहूं है बेहद खास, इतिहास है 2000 साल पुराना, जैसा नाम वैसा काम, हड़प्पाकालीन सभ्यता भी नाता

दरअसल, गेहूं एक ऐसा अनाज है जिसका सेवन सभी करते हैं. गेहूं के आटे में कार्बोहाइड्रेट मौजूद होता है और इस आटे का ग्लाइसेमिक इंडेक्स भी ज्यादा होता है, जिसका सेवन करने से ब्लड में शुगर का स्तर तेजी से बढ़ता है. यही नहीं ग्लूटेन की मात्रा भी गेहूं में काफी ज्यादा पाई जाती है, इससे कई लोगों को खासकर बच्चे एलर्जी जैसे रोगों का शिकार हो रहे हैं. इसका जिक्र कई सर्वों में भी सामने आ चुका है. अब सवाल यह उठता है कि आखिर कैसे डायबिटीज को नियंत्रित या कम किया जाए.

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नाहन : आज हम ऐसे खास गेहूं के बारे में बताएंगे, जिसका इतिहास करीब 2000 साल पुराना है. इसका संबंध हड़प्पाकालीन सभ्यता से भी जुड़ा है. गेहूं की ये किस्म इसलिए भी खास है क्योंकि जैसा इसका नाम है, काम भी वैसा ही है. यानी आजकल के खान-पान से बढ़ रहे रोगों खासकर आम हो चुकी डायबिटीज और हार्ट जैसी समस्याओं के लिए ये रामबाण से कम नहीं है.

सोना-मोती गेहूं की उपज।

गेहूं की ये किस्म है सोना-मोती. खास बात ये हैै कि हजारों साल पुराने इस गेहूं की किस्म का प्रायोगिक उत्पादन जिला सिरमौर में हो रहा है. दरअसल, गेहूं एक ऐसा अनाज है जिसका सेवन सभी करते हैं. गेहूं के आटे में कार्बोहाइड्रेट मौजूद होता है और इस आटे का ग्लाइसेमिक इंडेक्स भी ज्यादा होता है, जिसका सेवन करने से ब्लड में शुगर का स्तर तेजी से बढ़ता है. यही नहीं ग्लूटेन की मात्रा भी गेहूं में काफी ज्यादा पाई जाती है, इससे कई लोगों को खासकर बच्चे एलर्जी जैसे रोगों का शिकार हो रहे हैं. इसका जिक्र कई सर्वों में भी सामने आ चुका है. अब सवाल यह उठता है कि आखिर कैसे डायबिटीज को नियंत्रित या कम किया जाए.

इसे देखते हुए कृषि विज्ञान केंद्र, सिरमौर (धौलाकुआं) ने गेहूं की एक ऐसी किस्म को अपने प्रदर्शन केंद्र में प्रयोग के तौर पर उगाया है, जो 2000 वर्ष पुरानी है. यही नहीं इस किस्म को हड़प्पा सभ्यता काल में उत्पादित होने वाली किस्म भी माना जाता है. सोना-मोती किस्म के इस बीज को छत्तीसगढ़ से मंगवाया गया था. आधा बीघा जमीन में बीज बोने के बाद अब ये फसल लहलहा रही है. देखने में ही ये किस्म गेहूं की अन्य किस्मों से अलग नजर आ रही है. अब फसल तैयार होने के बाद वैज्ञानिक इसकी क्वालिटी चेक करेंगे.

दरअसल, इस बीज को यहां उगाने का प्रायोगिक मकसद ही यही है कि इसके बीज को संरक्षित किया जाए और अधिक मात्रा में मल्टीप्लाई कर किसानों को वितरित किया जाए. कृषि विशेषज्ञों की मानें तो इस किस्म के गेहूं की खासियत ये है कि इसका सेवन करने वालों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. खासकर डायबिटीज (शुगर) के मरीजों के लिए इसे काफी बेहतर माना जाता है, क्योंकि इसमें शुगर की मात्रा ना के बराबर मानी गई है. माना जाता है कि गेहूं की ये किस्म पौराणिक रूप से भारतीय है. ये भारत की वो मूल प्रजाति है, जो कहीं ना कहीं रोग व्याधियों को दूर करने के लिए पुरातन समय में अहम भूमिका निभाती है.

सोना-मोती का दाना अन्य किस्मों से अलग सोना मोती किस्म के गेहूं का दाना अलग तरह का होता है. इसका दाना गेहूं की दूसरी किस्मों के मुकाबले गोल होता है. इसके पौधे की ऊंचाई भी कम होती है यानी जमीन से इसकी ऊंचाई करीब दो फीट होती है. ऊंचाई कम होने के कारण आंधी, तूफान और बारिश में भी इसकी बालियां टूटकर जमीन पर नहीं गिरती.

शुगर फ्री होने से दाम भी अच्छे
कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि सोना-मोती डायबिटीज के मरीजों के लिए रामबाण होने के कारण इसकी कीमत भी दूसरी किस्मों से काफी अच्छी है. गुणवत्ता के तौर पर ये किस्म प्रोटीन, विटामिन और खनिजों से भरपूर होने के साथ साथ इसमें फाॅलिक एसिड व मानव शरीर के लिए जरूरी अमीनो एसिड भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं. फाइबर की मात्रा बहुत अधिक होती है. ये किस्म डायबिटीज मरीजों के लिए ये रामबाण औषधि का काम कर सकती है क्योंकि ग्लाइसीमिक कम होता हैं यानी ग्लूटेन की मात्रा कम होती है. यह डायबिटीज और हृदय रोगियों के लिए अत्यंत लाभकारी है.

सिरमौर में प्राकृतिक खेती के तौर पर उगाया
कृषि विज्ञान केंद्र, धौलाकुआं (सिरमौर) के प्रभारी एवं प्रधान वैज्ञानिक डा. पंकज मित्तल ने बताया कि सोना-मोती किस्म के बीज को प्रदर्शन फार्म पर प्राकृतिक खेती से उगाया गया है. उन्होंने बताया कि गेहूं की ये किस्म स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभप्रद है. पुरातन काल में इसी गेहूं या अन्य प्राचीन किस्मों के बीज का इस्तेमाल खाद्यान्न के तौर पर होता था, लेकिन आधुनिकरण  एवं अधिक उत्पादन प्राप्त करने की होड़ के चलते आज इस तरह की पुरातन किस्मों के बीज मिलना दुर्लभ हो गया है. इस बीज को सिर्फ दो किलोग्राम छत्तीसगढ़ से मंगवाया गया था. इसकी पैदावार के बाद इसकी क्वालिटी चेक होगी. इसके बाद इसे और अधिक मात्रा में उत्पादित करके इसका बीज किसानों में वितरित किया जाएगा.

खत्म होगी शुगर और एलर्जी की समस्या
कृषि विज्ञान केंद्र धौलाकुआं (सिरमौर) की पादप रोग विज्ञान विशेषज्ञ डा. शिवाली धीमान ने बताया कि सोना-मोती बीज तकरीबन 2000 वर्ष पुराना माना गया है. इस बीज की नई किस्मों के साथ तुलना की जाएगी कि पैदावार कितनी हुई है. इस किस्म की खासियत ये है कि इसमें ग्लूटेन की मात्रा बेहद कम है. अमूमन गेहूं की कई आजकल प्रचलित किस्मों में ग्लूटेन की मात्रा काफी ज्यादा होती है, जिससे कई लोगों को ग्लूटेन एलर्जी की भी शिकायत रहती है. कई लोग गेहूं को खाना भी छोड़ रहे हैं. ऐसे रोगों से मुक्ति पाने के लिए ये पुरातन किस्म बड़ा विकल्प है क्योंकि  शुगर की बीमारी तो जैसे आम रोग हो गया है. जिन लोगों को एलर्जी और शुगर की समस्या है, वह भविष्य में इस किस्म के गेहूं के उत्पादन एवं उसके सेवन को निसंकोच कर लाभप्रद हो सकते हैं.