विक्रमबाग के पीपलवाला में तीन दिन सजेगा मां मंत्रा देवी का मेला, आदिबद्री से लाई गई थी माता की पिंडी, जानें क्या है मंदिर का इतिहास

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नाहन : जिला सिरमौर के विकास खंड नाहन की विक्रमबाग पंचायत के पीपलवाला में तीन दिन मेले का आयोजन किया जा रहा है. 29 अप्रैल से 1 मई तक मां मंत्रा देवी (दुधाधारी देवी) के मेले में जहां कुश्ती प्रतियोगिता का आयोजन होगा, वहीं मेले के दौरान झांकियां भी मुख्य आकर्षण होंगी.

मंदिर समिति के प्रधान महीपाल ने बताया कि अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर हर साल की तरह इस बार भी 29 अप्रैल की शाम माता के भंडारे के बाद भव्य जागरण का आयोजन होगा. 30 अप्रैल को सुबह हवन यज्ञ होगा. दोपहर बाद भंडारा और शाम को सुंदर व आकर्षक झांकियां निकाली जाएंगी.

महीपाल ने बताया कि पहली मई को कुश्तियां और शाम को बाबा खाटू श्याम का जागरण किया जाएगा. इस तीन दिवसीय मेले में असंख्य श्रद्धालु भाग लेकर मां मंत्रा देवी (दुधाधारी देवी) का आशीर्वाद प्राप्त करेंगे.

जाने माने विद्वान पंडित सुभाष चंद्र शर्मा बताते हैं कि इस मंदिर का इतिहास 1950 के दशक से जुड़ा है. वन विभाग का कोई कर्मचारी माता की पिंडी इस देवी के मूल मंदिर जो मातर पंचायत के साथ हरियाणा सीमा के साथ लगते आदिबद्री मंदिर की नजदीकी पहाड़ी पर स्थित मंदिर से लाया था. उसने इस पिंडी को पीपलवाला में इस स्थान पर चिल्ले के पेड़ के नीचे स्थापित किया.

यहां निरंतर पिंडी की पूजा होने लगी. कुछ समय बाद हरबंस नामक एक कर्मचारी यहां वन विभाग की निरीक्षण कुटीर में पहुंचा. उसका बेटा गंभीर रूप से बीमार था, जो हरियाणा के किसी नामी अस्पताल में उपचाराधीन था. वह कर्मचारी रात को वापस न जा सका और पूरी रात माता की पिंडी के आगे बैठ कर अपने पुत्र के स्वस्थ होने की कामना करता रहा.

वह लड़का अंततः स्वस्थ हो गया और हरबंस का मां के प्रति विश्वास बढ़ गया. उसने यहां के वार्षिक आयोजन में बढ़-चढ़कर भाग लेना शुरू कर दिया. उन्होंने 1994 में आंजभोज क्षेत्र के धौलीढांग के तत्कालीन महात्मा सम्पूर्णानंद नंद जी और बिक्रम बाग पंचायत के तत्कालीन प्रधान स्व. पंडित राजकिशन शर्मा के तत्वाधान में यहां माता की नई मूर्ति की स्थापना की.

माता मंत्रा देवी का मूल मंदिर मातर पंचायत की शिवालिक पहाड़ियों पर हरियाणा हिमाचल सीमा पर स्थित है, जिसका इतिहास आदिबद्री नारायण मंदिर से जुड़ा है. सतयुग में भगवान नारायण पृथ्वी पर विचरण करते हुए इस स्थान पर पहुंचे और तपोलीन हो गए.

माता लक्ष्मी भगवान को पूरे ब्रह्मांड में ढूंढती रहीं. अन्ततः देवर्षि नारद के निर्देश पर वह आदिबद्री पहुंचीं और भगवान नारायण को तपस्या में लीन पाया. सूर्य की तीक्ष्ण धूप के कारण प्रभू का रंग काला पड़ गया था. माता लक्ष्मी ने वहां बद्री के पेड़ के रूप में स्थित होकर भगवान नारायण को छाया दी, जिससे वह तपस्या से जाग्रत हो गए.

इस उपलक्ष्य में देवताओं द्वारा वहां अनुष्ठान किया गया, जिसमें भगवान नारायण को सपत्नीक भाग लेना था, लेकिन मां लक्ष्मी बद्री का पेड़ बन गई थी. अतः देवताओं द्वारा मंत्र शक्ति द्वारा माता लक्ष्मी का प्रतिरूप मंत्रा देवी का प्राकट्य किया गया.

अनुष्ठान के बाद माता मंत्रा देवी को साथ की शिवालिक पहाड़ी पर स्थापित किया गया. यहां भी हर साल अक्षय तृतीया पर मेले का आयोजन किया जाता है. यह देवी माता लक्ष्मी का प्रतिरूप है.

मार्कण्डेय पुराण के अंतर्गत श्रीदुर्गा सप्तशती के मध्यम चरित्र में मां लक्ष्मी की स्तुति गान किया गया है.