धौलाकुआं में हानिकारक गाजर घास के खिलाफ जंग, क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र ने चलाया जागरूकता अभियान

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. प्रियंका ठाकुर ने बताया कि गाजर घास एक बेहद ही आक्रामक खरपतवार है। यह पौधा मूल रूप से अमेरिका महाद्वीप से आया है, लेकिन अब यह पूरे भारत में जंगल की आग की तरह फैल चुका है। यह सिर्फ फसलों को ही नुकसान नहीं पहुंचाती, बल्कि यह इंसानों और जानवरों के स्वास्थ्य के लिए भी एक बड़ा खतरा है।

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धौलाकुआं : क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र धौलाकुआं में मंगलवार को पार्थेनियम दिवस का आयोजन किया गया, जिसे आम बोलचाल में गाजर घास भी कहते हैं। इस आयोजन का मकसद लोगों को इसके हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूक करना और इसे जड़ से खत्म करने के लिए प्रेरित करना रहा।

कार्यक्रम में पर केंद्र की सह-निदेशक डॉ. प्रियंका ठाकुर, सहायक प्राध्यापिका डॉ. शिल्पा, डॉ. सिमरन कश्यप और सभी कर्मचारियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. प्रियंका ठाकुर ने बताया कि गाजर घास एक बेहद ही आक्रामक खरपतवार है।

यह पौधा मूल रूप से अमेरिका महाद्वीप से आया है, लेकिन अब यह पूरे भारत में जंगल की आग की तरह फैल चुका है। उन्होंने बताया कि यह सिर्फ फसलों को ही नुकसान नहीं पहुंचाती, बल्कि यह इंसानों और जानवरों के स्वास्थ्य के लिए भी एक बड़ा खतरा है। इसके परागकण से एलर्जी, सांस की समस्याएं और त्वचा रोग हो सकते हैं।

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इस अवसर पर डॉ. शिल्पा ने इस खरपतवार से निपटने के लिए कई महत्वपूर्ण उपाय सुझाए। उन्होंने जैविक और यांत्रिक नियंत्रण विधियों पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि वेरोनिया जैसे जैविक एजेंटों का इस्तेमाल करके भी इसे नियंत्रित किया जा सकता है। उन्होंने इस लड़ाई में सामुदायिक भागीदारी की महत्ता पर भी प्रकाश डाला। जब तक सब मिलकर प्रयास नहीं करेंगे, तब तक इस समस्या से छुटकारा पाना मुश्किल होगा।

कार्यक्रम के दौरान सभी प्रतिभागियों ने मिलकर केंद्र परिसर से गाजर घास को उखाड़ा और पर्यावरण संरक्षण व जैव विविधता को बनाए रखने के लिए इस खरपतवार के प्रति जागरूकता फैलाने की शपथ ली।

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