धौलाकुआं में ‘ग्रीन गोल्ड’: इन 20 से ज्यादा किस्मों के लगाए 1600 पौधे, विश्व बांस दिवस पर आयोजन

यह कार्बन अवशोषित कर मिट्टी के कटाव को रोकता है और इसका आर्थिक महत्व भी है। फर्नीचर, हस्तशिल्प, कागज उद्योग से लेकर और आधुनिक निर्माण सामग्री बनाने में इसका इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है। इसके अलावा यह बागवानी और सजावट के लिए भी एक बेहतरीन विकल्प है। फूलों की सजावटी टोकरियां, गमले और प्राकृतिक बाड़ बनाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है, जो पर्यावरण के अनुकूल है।

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धौलाकुआं : क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र धौलाकुआं में विश्व बांस दिवस को बड़े ही उत्साह के साथ मनाया गया। इस मौके पर 20 से ज्यादा अलग-अलग किस्मों के 1600 पौधे लगाए गए।

ये कार्यक्रम सह-निदेशक डॉ. प्रियंका ठाकुर के नेतृत्व में आयोजित हुआ। उन्होंने बांस के आर्थिक और पर्यावरणीय महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि बांस को ‘ग्रीन गोल्ड’ कहा जाता है।

बांस न सिर्फ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देता है, बल्कि पर्यावरण की सुरक्षा और रोजगार के नए मौके भी पैदा करता है। बांस एक बहुउपयोगी पौधा है, जिसका इस्तेमाल कई क्षेत्रों में किया जा रहा है।

यह कार्बन अवशोषित कर मिट्टी के कटाव को रोकता है और इसका आर्थिक महत्व भी है। फर्नीचर, हस्तशिल्प, कागज उद्योग से लेकर और आधुनिक निर्माण सामग्री बनाने में इसका इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है।

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इसके अलावा यह बागवानी और सजावट के लिए भी एक बेहतरीन विकल्प है। फूलों की सजावटी टोकरियां, गमले और प्राकृतिक बाड़ बनाने के लिए इसका उपयोग किया जाता है, जो पर्यावरण के अनुकूल है।

लैंडस्केपिंग में बांस की घनी हरियाली और आकर्षक डंठल बगीचों, पार्कों और सार्वजनिक स्थलों को सौंदर्यपूर्ण बनाते हैं। इसे प्राकृतिक बाड़, हेज, वायु अवरोधक और मिट्टी संरक्षण के लिए लगाया जाता है। काले बांस और रंगीन तनों वाली प्रजातियां विशेष रूप से सजावटी आकर्षण के लिए प्रसिद्ध हैं।

इस अवसर पर अनुसंधान केंद्र में डेंड्रोकैलैमस एस्पर, बैम्बुसा नूटन्स, रिंगाल, डी. लॉन्गिस्पैथस, ब्लैक बैम्बू, डी. लैटिफ्लोरस, डी. हैमिल्टोनीआई, डी. चिनेंसिस, बैम्बुसा वल्गेरिस, बी. वामियम, फिलोस्टैक्स अल्बा, बी. स्ट्रिक्टा, डी. सिक्किमेन्सिस, बी. पॉलीमोर्फा, बी. बाल्कोआ, डी. टुल्डा, बैम्बुसा मल्टीप्लेक्स, बी. स्ट्रिक्टस, फिलोस्टैक्स नाइग्रा और बैम्बुसा वल्गेरिस ‘ग्रीन’ जैसी किस्मों को लगाया गया।

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इन पौधों को लगाने के लिए नेशनल बैम्बू मिशन ने आर्थिक सहायता प्रदान की गई। इस कार्यक्रम में डॉ. सिमरन कश्यप के अलावा अन्य फील्ड स्टाफ के सदस्य भी मौजूद रहे, जिन्होंने इस कार्यक्रम को सफल बनाया।