धौलाकुआं : क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र धौलाकुआं में शनिवार को पार्थेनियम (गाजर घास) जागरुकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस अवसर पर केंद्र की सह निदेशक डॉ. प्रियंका ठाकुर, सहायक प्राध्यापिका डॉ. शिल्पा, यंग प्रोफेशनल-॥ डॉ. सिमरन कश्यप समेत कार्यालय के कर्मचारियों और समस्त फील्ड स्टाफ ने भाग लिया।
कार्यक्रम का उद्देश्य गाजर घास जैसी हानिकारक खरपतवार के दुष्प्रभावों के प्रति लोगों को जागरूक करना और इसके नियंत्रण के लिए समुचित उपायों को अपनाना था। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सह निदेशक डॉ. प्रियंका ठाकुर ने बताया कि गाजर घास अत्याधिक खतरनाक खरपतवार है, जिसे आमतौर पर “गाजर घास” के नाम से जाना जाता है। यह मूलतः अमेरिका महाद्वीप से आया हुआ पौधा है, जो अब पूरे भारत में बहुत तेजी से फैल चुका है।
गाजर घास न केवल फसलों के लिए हानिकारक है, बल्कि यह मनुष्यों और पशुओं के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है। इसके संपर्क में आने से त्वचा में खुजली, जलन, दाने (रैशेज) और एक्जिमा जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसके पराग से एलर्जी राइनाइटिस, अस्थमा और सांस लेने में तकलीफ, आंखों में जलन जैसी अन्य कई बीमारियां हो सकती हैं।
वहीं, दुधारू पशुओं में इसके सेवन से दूध उत्पादन में कमी आ सकती है। यह एक तेजी से फैलने वाला खरपतवार है जो फसलों की पैदावार को 40 फीसदी तक कम कर सकता है। इसकी उपस्थिति स्थानीय वनस्पतियों को उगने से रोकती है, जिससे पर्यावरण को नुकसान होता है।
उन्होंने कहा कि इस घास को छोटी अवस्था अथवा फूल आने से पहले ही उखाड़ देना चाहिए, ताकि फूल से बीज झड़ने से पहले इसे और अधिक फैलने से रोका जा सके।
इस अवसर पर डॉ. शिल्पा ने गाजर घास के जैविक एवं यांत्रिक नियंत्रण, वेरोनिया जैसी जैविक विधियों के उपयोग एवं इसके निवारण में सामुदायिक भागीदारी की महत्ता पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों द्वारा केंद्र परिसर में गाजर घास उन्मूलन अभियान चलाया गया। इस अवसर पर उपस्थित सभी लोगों ने पर्यावरण संरक्षण एवं जैव विविधता को बनाए रखने के लिए इस खरपतवार के प्रति जागरूकता फैलाने की शपथ ली।