हिमाचल : कृषि विश्वविद्यालय ने विकसित की धान की ब्लास्ट रोग प्रतिरोधी किस्में

पहली किस्म ‘हिम पालम धान-3’ (एचपी आर-2865) है, जो औसतन 38-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। दूसरी किस्म ‘हिम पालम धान-4’ (एच पी आर-3201) है, जो औसतन 40-42 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है।

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पालमपुर : चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत मलां स्थित धान व गेहूं अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने धान की ब्लास्ट रोग प्रतिरोधी व अधिक उत्पादन वाली दो किस्में विकसित की हैं। यह जानकारी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नवीन कुमार ने साझा की।

प्रो. नवीन कुमार ने इस उपलब्धि के लिए वैज्ञानिकों की सराहना करते हुए बताया कि ये किस्में उन्नत तकनीकों और किसानों की जरूरत पर आधारित हैं। ये किस्में प्रदेश की खाद्य सुरक्षा के अतिरिक्त प्रदेश के किसानों की आय बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। चूंकि, यह किस्में ब्लास्ट रोग प्रतिरोधी हैं। इनकी खेती से ब्लास्ट रोग के निदान के लिए प्रयोग किए जाने वाले रसायनों के प्रयोग में भी भारी कमी आएगी।

गौरतलब हो कि धान हिमाचल प्रदेश की प्रमुख फसल है और इसकी खेती प्रदेश के 10 जिलों में की जाती है। प्रदेश में धान उत्पादन बढ़ाने में मुख्य बाधा धान का ब्लास्ट रोग है, जो फंफूद प्रजाति के जीवाणू मैग्नापोर्थे ग्रीसिया द्वारा होता है। ब्लास्ट रोग पत्तों, तनों व धान की बालियों की कोशिकाओं को संक्रमित करता है, जिससे धान की पैदावार कम हो जाती है।

वैज्ञानिकों ने धान की ब्लास्ट रोग प्रतिरोधी व अधिक उत्पादन वाली जो दो किस्में विकसित की हैं। जिसे प्रदेश एवं देश की कमेटियों द्वारा हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों के लिए अनुमोदित किया जा चुका है। दोनों ही किस्में 120-130 दिनों में पककर तैयार हो जाती हैं।

पहली किस्म ‘हिम पालम धान-3’ (एचपी आर-2865) है, जो औसतन 38-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। इसके दाने लंबे व मोटे होते हैं। यह मध्यम ऊंचाई वाली किस्म है। दूसरी किस्म ‘हिम पालम धान-4’ (एच पी आर-3201) है, जो औसतन 40-42 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। यह भी मध्यम ऊंचाई वाली किस्म है। इसके दाने बासमती की तरह लंबे व पतले होते हैं।

इन उच्च उपज देने वाली किस्मों को कई वर्षों की गहन अनुसंधान प्रक्रिया, सतत् परीक्षण और किसानों की भागीदारी से विकसित किया गया है। उच्च उपज क्षमता, कम अवधि में परिपक्वता, ब्लास्ट रोग प्रतिरोधक क्षमता और किसानों व बाजार के अनुरूप गुणवत्ता इन नई किस्मों की विषेशताएं हैं।