हिमाचल में अब स्वदेशी केंचुए बनाएंगे जैविक खाद, 2 से 46 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी रहेंगे जिंदा, और भी कई खूबियां

असल में केंचुए की पुरानी किस्म एग्जॉटिक जिन्हें विदेशी केंचुआ भी कहते हैं, उसके मुकाबले स्वदेशी केंचुओं में न केवल जल्द खाद बनाने की क्षमता है, तो इनका सर्वाइवल रेट भी विदेशी केंचुओं के मुकाबले बेहतर है.

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शिमला/नाहन : हिमाचल प्रदेश में अब स्वदेशी केंचुए खाद तैयार करेंगे. भारतीय केंचुए की ये प्रजाति फटाफट जैविक खाद बनाने में सक्षम हैं.

दरअसल, हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर में स्वदेशी केंचुए का कल्चर तैयार किया जा रहा है. यह तकनीक भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, बरेली के प्रधान वैज्ञानिक डा. जय गोपाल की है, जिसे कृषि विज्ञान केंद्र, धौलाकुआं (सिरमौर) प्रोत्साहित करने का प्रयास कर रहा है. ताकि, इस तकनीक का हिमाचल के किसान भी लाभ उठा सकें.

बता दें कि अब तक देश व प्रदेश में केंचुए की पुरानी किस्म (एग्जॉटिक) ही वर्मी कंपोस्ट तैयार करने के लिए उपयोग में लाई जा रही थी और जो किसान पुरानी किस्म के द्वारा वर्मी कंपोस्ट तैयार कर रहे हैं, उन्हें इस बात का अंदाजा है कि ये केंचुए खाद बनाने में अधिक समय लेते हैं.

इसके साथ साथ हिमाचल के ठंडे और गर्म मौसम में ज्यादा समय तक जीवित भी नहीं रह पाते. इससे किसानों को अपने खेतों के लिए जल्द और वक्त पर जैविक खाद नहीं मिल पाती. लिहाजा, किसानों को दूसरी जैविक खादों या फिर रासायनिक खादों पर निर्भर रहना पड़ता है.

केंचुओं पर लंबे शोध और प्रयासों के बाद वैज्ञानिकों ने अब स्वदेशी किस्म ईजाद की है, जिनका कल्चर कृषि विज्ञान केंद्रों में तैयार हो रहा है. कल्चर बढ़ने के बाद इन्हें किसानों को दिया जाएगा, जहां किसानों के सहयोग से केंचुए की इस नई प्रजाति की संख्या तो बढ़ेगी ही और इन केंचुओं की संख्या में वृद्धि होने के साथ जैविक खाद भी फटाफट तैयार होगी.

विदेशी से स्वदेशी केंचुए इस तरह अलग
विदेशी केंचुओं की कमी ये है कि इनको खाद बनाने में वक्त ज्यादा लगता है. वहीं, हिमाचल की विषम जलवायु परिस्थितियों यानी ठंडे और गर्म इलाकों में ये केंचुए ज्यादा समय के लिए नहीं पनप पाते और इनका सर्वाइवल रेट भी अच्छा नहीं है.

असल में केंचुए की पुरानी किस्म एग्जॉटिक जिन्हें विदेशी केंचुआ भी कहते हैं, उसके मुकाबले स्वदेशी केंचुओं में न केवल जल्द खाद बनाने की क्षमता है, तो इनका सर्वाइवल रेट भी विदेशी केंचुओं के मुकाबले बेहतर है. ये केंचुए 2 डिग्री से लेकर 46 डिग्री के तापमान में खुद को जिंदा रखने की क्षमता रखते हैं. यानी ठंडे से ठंडे और गर्म मौसम का इन पर अधिक असर नहीं होता.

धौलाकुआं में बनाई गई है उत्पादन इकाई
कृषि विज्ञान केंद्र धौलाकुआं (सिरमौर) में स्वदेशी केंचुए की प्रदर्शन इकाई स्थापित की गई हैं. इसके साथ एक अन्य इकाई विदेशी केंचुए की भी यहां पहले से ही कार्य कर रही है. कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक चंद दिनों के भीतर स्वदेशी केंचुओं ने वर्मी कंपोस्ट तैयार कर दी है, जबकि साथ लगती इकाई में विदेशी केंचुए अब तक खाद तैयार नहीं कर पाए हैं. स्वदेशी केंचुओं की उत्पादन इकाई में उनकी संख्या निरंतर बढ़ रही है और जल्दी ही किसानों को इनकी उपलब्धता सुनिश्चित हो पाएगी.

देखने में ये भिन्नता
स्वदेशी केंचुआ काफी छोटा और बारीक किस्म का जीव है. जबकि, विदेशी प्रजाति के केंचुए मोटी और लंबी किस्म के हैं. स्वदेशी देखने में अलग से लाल रूप में दिखता है. जबकि, विदेशी का शरीर बेहद गाढ़े रंग का लाल, भूरे और धारीदार रूप में देखा जा सकता है.

किसानों में जागरूकता और आय में वृद्धि एकमात्र उद्देश्य
भा.कृ.अनु.प. के कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, लुधियाना के सहयोग से कृषि विज्ञान केंद्र, धौलाकुआं (सिरमौर) किसानों को जागरूक करने और उनकी आय बढ़ाने के लिए प्रयासरत है जिसके लिए अन्य कई प्रकार के तकनीकी शोध भी किए जा रहे हैं ताकि, किसानों को इसका लाभ मिल सके.

केंद्र में फसल प्रदर्शनी इकाई के समीप वर्मी कंपोस्ट तैयार करने के लिए स्वदेशी केंचुए का इस्तेमाल किया गया है, जिसमें विदेशी केंचुए की तुलना में जल्द खाद बनाने, किसी भी तापमान में खुद को जिंदा रखने की क्षमता है. अब तक केंचुए की पुरानी यानी विदेशी किस्मों से ही खाद तैयार हो रही थी. अब ये काम स्वदेशी केंचुए करेंगे.

ये केंचुए डा. जय गोपाल की वर्मी कल्चर टेक्नोलॉजी है, जो पूर्ण रूप से स्वदेशी है. डा. जय गोपाल का इन केंचुओं की स्वदेशी प्रजाति को तैयार करने में बेहद महत्वपूर्ण योगदान है और कृषि विज्ञान केंद्र इस तकनीक को बढ़ाने के लिए काम कर रहा है. इसका कल्चर तैयार करके जल्द ही किसानों को दिया जाएगा.

निकट भविष्य में इसके बेहद सकारात्मक परिणाम आने की संभावना है और किसान अपने उपयोग के लिए जैविक खाद जल्द तैयार करने में सक्षम हो पाएंगे. स्वदेशी केंचुए के प्रयोग से वर्मी कंपोस्ट तकनीक को लोकप्रिय बनाने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र प्रयास जारी रखेगा.
– डा. पंकज मित्तल, प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रभारी, कृषि विज्ञान केंद्र धौलाकुआं (सिरमौर)