हिमाचल की मुश्किल सड़कों पर चारपाई से ‘सफर’, बच गई मां और बच्चे की जान

कजवा से पीयूनाली तक 12 किलोमीटर का यह सफर किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं था, जहां हर कदम पर भूस्खलन का खतरा था। पीयूनाली से संगड़ाह तक का 14 किलोमीटर लंबा सफर तय करने के लिए उन्होंने किराये पर गाड़ी ली, लेकिन

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नाहन : सिरमौर जिले में कुदरत का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है, लेकिन इंसानियत और हिम्मत ने एक बार फिर मौत को मात दी है। भारी बारिश और बंद सड़कों के बीच एक गर्भवती महिला को ग्रामीणों ने 12 किलोमीटर तक चारपाई पर उठाकर अस्पताल पहुंचाया।

यह सिर्फ एक खबर नहीं, बल्कि सिरमौर की दुर्गम परिस्थितियों में ग्रामीणों की हिम्मत और सूझबूझ की एक दिल छू लेने वाली घटना है।

जानकारी के मुताबिक उपमंडल संगड़ाह के दूरदराज गांव कजवा की 28 वर्षीय निशा को प्रसव पीड़ा शुरू हुई, तो उसके पति हेमचंद और ग्रामीणों के पास एक ही रास्ता था, उसे चारपाई पर लिटाकर अस्पताल ले जाना। लगातार बारिश से सड़कें कीचड़ और मलबे से अटी पड़ी थीं।

कजवा से पीयूनाली तक 12 किलोमीटर का यह सफर किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं था, जहां हर कदम पर भूस्खलन का खतरा था। पीयूनाली से संगड़ाह तक का 14 किलोमीटर लंबा सफर तय करने के लिए उन्होंने किराये पर गाड़ी ली, लेकिन वह भी रास्ते में बीच बीच में फंस गई, जिसे धक्का लगाकर निकालना पड़ा। इस मुश्किल भरे सफर का अंत संगड़ाह अस्पताल में हुआ, जहां समय पर पहुंचने से मां और नवजात शिशु दोनों की जान बच गई।

आमतौर पर पहली डिलीवरी के मामलों को नाहन मेडिकल कॉलेज रेफर किया जाता है, लेकिन सड़कों की स्थिति को देखते हुए स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. वैभव ने संगड़ाह में ही डिलीवरी कराने का फैसला किया।

उन्होंने तमाम सुविधाओं के अभाव के बावजूद एक सफल डिलीवरी करवाई। जहां एक ओर आदर्श अस्पताल का दर्जा मिला सीएचसी संगड़ाह मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है, वहीं दूसरी ओर डॉक्टर और ग्रामीण मिलकर जीवन को बचाने की जंग लड़ रहे हैं।

यहां डॉक्टरों के 10 स्वीकृत पदों में से सिर्फ एक ही नियमित चिकित्सक मौजूद है। हाल ही में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत 6 नर्सों की नियुक्ति और 30 लाख की लैब मिलने से अस्पताल में कुछ सुधार जरूर हुआ है।