अब लीजिए आर्गेनिक सेब से बनी बर्फी का जायका, स्वाद और सेहत का नया खजाना

यह बर्फी एक साल तक बिना फंगस के रहती है और बिलकुल भी खराब नहीं होती है, जबकि इसका स्वाद एक दम ताजा ही रहता है। इसकी डिमांड बढ़नी शुरू हो गई है।

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शिमला : सेब और इससे जुड़े कई उत्पादों का तो आपने जायका लिया ही होगा, लेकिन क्या कभी सेब की बर्फी का स्वाद चखा है। इस बर्फी को जिसने भी खाया, उसने बेहद पसंद किया है। इसे ऑर्गेनिक तरीके से तैयार किया जा रहा है।

दरअसल, जिला शिमला अब इस बर्फी के लिए भी मशहूर होने लगा है। जिला के आकांक्षी खंड छौहारा के तहत एक स्वयं सहायता समूह ऐसा है जो सेब की बर्फी तैयार करके लोगों तक पहुंचा रहा है। समूह की सदस्य सपना ने बताया कि सबसे पहले अच्छे सेब एकत्रित करते हैं। पहले चरण में इन्हें तीन-चार बार स्वच्छ पानी के साथ धोया जाता है। दूसरे चरण में सेब से पल्प निकाला जाता है।

पल्प निकालने के बाद काफी देर तक पकाया जाता है। इसके बाद ड्राई फ्रूट्स मिलाए जाते हैं। फिर पल्प और ड्राई फ्रूट्स दोनों को पकाया जाता है। काफी देर तक पकाने के बाद जब रंग गहरा भूरा हो जाता है तो फिर पकाना बंद कर दिया जाता है। इसके बाद इसके प्लेट में तीन से चार दिनों तक रख दिया जाता है। फिर सेब की बर्फी बनकर तैयार हो जाती है। इसके तुरंत बाद छोटे-छोटे पीस में काटकर डिब्बे में पैकिंग की जाती है।

एक साल तक नहीं लगती फंगस
स्वयं सहायता समूह के अनुसार वह पिछले तीन सालों से सेब की बर्फी बना रहे हैं। यह बर्फी एक साल तक बिना फंगस के रहती है और बिलकुल भी खराब नहीं होती है, जबकि इसका स्वाद एक दम ताजा ही रहता है। इसकी डिमांड बढ़नी शुरू हो गई है।

आकांक्षी हाॅट में खरीद सकते सेब की बर्फी
अगर आप सेब की बर्फी का स्वाद चखना चाहते है तो रिज मैदान के साथ पदमदेव परिसर में छौहारा और कुपवी आकांक्षी विकास खंड की ओर से लगाए गए ‘आकांक्षी हाॅट’ में जय देवता जाबल नारायण स्वयं सहायता समूह के स्टॉल पर खरीद सकते हैं। इसका एक डिब्बा 325 रुपये का बेचा जा रहा है। ऑनलाइन डिलीवरी की सुविधा भी उपलब्ध है।

मटर की खेती से बर्फी तक का सफर
सेब की बर्फी तैयार करने वाले स्वयं सहायता समूह का सफर काफी प्रेरणादायक है। वर्ष 2019 में जाबली गांव की 5 महिलाओं ने जय देवता जाबल की जमीन पर एनआरएलएम के माध्यम से मिली 15,000 रुपये की वित्तीय सहायता से मटर की खेती शुरू की थी। समूह ने पहली ही फसल में 75 हजार रुपये की कमाई की थी।

इसके बाद अगले वर्ष 75 हजार रुपये की फसल लगाने के बाद ढाई लाख रुपये की आय हुई। फिर समूह ने 30 हजार रुपये जय देवता जाबल के मंदिर में दे दिए और खेती करना बंद कर दिया। समूह ने फैसला लिया कि एप्पल सीडर विनेगर बनाएंगे।

समूह ने प्राकृतिक तौर पर एप्पल सीडर का उत्पादन शुरू किया। इससे महीने की 10 हजार रुपये के आसपास आय होना शुरू हो गई। धीरे-धीरे समूह ने सेब जैम, सेब की चटनी, ड्रायड सेब, सेब का आचार, पिअर जैम, पिअर चटनी, ड्राय पिअर, मूली का आचार, लिंगड़ का आचार, बुरांश का जूस और सेब की बर्फी बनाना शुरू कर दिया।

समूह की प्रधान आशु ठाकुर ने बताया कि सेब की बर्फी की मांग काफी बढ़ रही है। हर महीने करीब 25 हजार रुपये की बर्फी कुल्लु जिला में भेजी जाती है। स्थानीय स्तर पर भी सेब की बर्फी बेची जा रही है। सेब की बर्फी बनाने में काफी मेहनत लगती है तो दाम भी उसी तरह तय किए गए हैं।

डीसी शिमला अनुपम कश्यप ने कहा कि जिला भर में स्वयं सहायता समूह अच्छा कार्य कर रहे हैं। हमारी प्राथमिकता स्वयं सहायता समूहों को मूलभूत सुविधाएं, प्रशिक्षण मुहैया करवाना है। इसके अलावा समय-समय पर उनके लिए स्टॉल लगाने की सुविधा मुहैया करवाई जाती है। जिला में स्वयं सहायता समूह द्वारा तैयार किए जा रहे कई उत्पादों की मांग देश दुनिया में भी होने लगी है।