नाहन : आज बात करेंगे एक ऐसी होनहार बेटी की, जिसने खेल का मैदान भले ही छोड़ दिया हो, लेकिन जीवन में हार कभी नहीं मानी।
कभी ये बेटी रणजी के मैदान में अपनी गेंद से बल्लेबाज को चकमा देती थी, लेकिन किस्मत ने उसे ही चकमा दे दिया। इसके बावजूद आत्मविश्वास के साथ ये बेटी एक नई पहचान बनकर उभरी है, जिसे आज लोग ‘बिजली बोर्ड की बेटी’ कहकर पुकारते हैं।
यहां बात हो रही है नाहन की अनीशा की। शायद ही किसी को मालूम हो कि सिरमौर की ये बेटी कभी रणजी के मैदान में उतरती थी। सपना सिर्फ एक देश के लिए खेलने का। मगर शायद अनीशा की तकदीर में कुछ और भी लिखा था।
इस बेटी ने 50 से अधिक रणजी मैच खेले, पर इंडिया की टीम में जगह नहीं मिली। फिर भी इस बेटी ने जीवन से हार नहीं मानी। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार में जन्म लेने वाली अनीशा ने आज यह साबित कर दिया कि अगर इरादे बुलंद हों, तो कोई सपना अधूरा नहीं रहता।
बचपन से ही अनीशा का दिल क्रिकेट के लिए धड़कता था। जब दूसरी लड़कियां गुड्डियों के साथ या फिर अन्य खेल खेलती थी, तब अनीशा हाथ में गेंद थामे मोहल्ले की गलियों में बॉलिंग किया करती थीं। सिर पर क्रिकेट का जुनून लिए इस क्षेत्र में कुछ कर गुजरना और बेहतर खिलाड़ी बन परिवार सहित प्रदेश का मान बढ़ाना उसका सपना बन चुका था।
हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन की धर्मशाला अकादमी में रहते हुए अनीशा ने अपनी जमा दो कक्षा तक की पढ़ाई धर्मशाला से पूरी की। इसके बाद उन्होंने अमृतसर से स्नातक की डिग्री प्राप्त की।
कारपेंटर पिता की बेटी ने एक मीडियम पेस बॉलर के रूप में हिमाचल प्रदेश महिला क्रिकेट टीम में शानदार प्रदर्शन किया। रणजी ट्रॉफी में 50 से अधिक मैचों में हिस्सा लिया और कई मौकों पर टीम की जीत की नींव रखी।
उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन आंध्र प्रदेश के खिलाफ रहा, जहां उन्होंने अपने दम पर सामने वाली टीम की बल्लेबाजी की कमर तोड़ दी थी। मेहनत रंग लाई और उन्हें 2 बार इंडिया के नेशनल कैंप में भी जगह मिली, लेकिन दुर्भाग्य से टीम इंडिया में चयन नहीं हो पाया।
इतना सब होने के बावजूद किसी के लिए यह ठहराव होता, लेकिन अनीशा के लिए यह एक नया मोड़ था। आर्थिक रूप से बेहद कमजोर परिवार से ताल्लुक रखने वाली अनीशा के सामने जिंदगी की कठोर सच्चाई खड़ी थी।
उन्होंने मैदान छोड़ा, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। अब अनीशा हिमाचल प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड की कर्मठ कर्मचारी हैं। अगस्त 2024 में बिजली बोर्ड में एक टी-मैट के रूप में भर्ती हो गई।
अनीशा जब खंभे या फिर ट्रांसफार्मर पर चढ़ती हैं, तो लोगों की नजरें ठहर जाती हैं। उनकी चाल, उनकी आंखों का आत्मविश्वास और शरीर की फुर्ती आज भी एक खिलाड़ी की पहचान बनाए हुए है।
हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड के अधिकारियों ने भी अनीशा अंसारी की प्रतिभा को पहचाना है और उन्हें आगे बढ़ने के हर संभव अवसर दिए जा रहे हैं। लोग उन्हें ‘बिजली बोर्ड की बेटी’ कहकर पुकारते हैं।
आज भी अनीशा अंसारी के दिल में क्रिकेट का जुनून बरकरार है। उनका कहना है कि अगर बिजली बोर्ड की अनुमति मिली और मौका मिला, तो वह फिर से मैदान में उतरने से पीछे नहीं हटेंगी।
इस बेटी का यह कहना दर्शाता है कि असली खिलाड़ी कभी रिटायर नहीं होते, वे सिर्फ परिस्थिति के मुताबिक रोल बदलते हैं। उन्होंने बताया कि दो मर्तबा इंडिया कैंप में चयन हुआ था, लेकिन अंतिम एंट्री नहीं मिल पाई।
अनीशा की ये कहानी सिर्फ एक लड़की की नहीं, बल्कि उन हजारों बेटियों की आवाज है, जो सीमित संसाधनों, पारिवारिक जिम्मेदारियों और सामाजिक धारणाओं के बावजूद आगे बढ़ना चाहती हैं।
वो उन सोचों को सीधी चुनौती देती हैं, जो मानती हैं कि बिजली के खंबे, टूल्स या मैदान सिर्फ पुरुषों के लिए बने हैं। अनीशा ने अपने जीवन से यह साबित कर दिया कि असल खिलाड़ी मैदान से नहीं, हौसले से पहचाना जाता है।