हिमाचल के सिरमौर में बढ़ रहा दुनिया के सबसे जहरीले किंग कोबरा का कुनबा, बार-बार हो साइटिंग, जानिए फैक्ट्स

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नाहन : हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर में 10 फीट लंबे किंग कोबरा की साइटिंग के बाद इसे रेस्क्यू किया गया है. ऐसा नहीं है कि इस क्षेत्र में किंग कोबरा पहली बार देखा गया हो. जबकि, इससे पहले कोलर के फांदी गांव में जून 2021 में साइटिंग हुई थी, जिसे पहली बार इसी क्षेत्र के प्रवीण कुमार ने कैमरे में कैद किया था. इसके बाद शिवालिक रेंज के इस क्षेत्र में कई बार किंग कोबरा की उपस्थिति सामने आ चुकी है. इतना जरूर है कि हिमाचल में इस किंग कोबरा को पहली बार रेस्क्यू किया गया है.

बता दें कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत इस प्रजाति को मानवीय उत्पीड़न के चलते संरक्षित प्रजाति में डाला गया है. वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट के अनुसार क्योंकि शर्मीली प्रजाति है और इंसानों से भी ये दूरी बनाए रखता है. गर्मियां शुरू होने से पहले और आबादी वाले क्षेत्रों में इसका दिखाई देना पर्यावरण असंतुलन और मौसम परिवर्तन की ओर इशारा कर रहा है.

सवाल ये उठता है कि जब सिरमौर के इस क्षेत्र में किंग कोबरा की उपस्थिति कई बार दर्ज हो चुकी है तो इस प्रजाति को संरक्षित करने और लोगों को जागरूक करने को लेकर सरकार क्या कदम उठा रही है. जबकि, अभी तक किसी भी तरह की कोई शुरूआत नहीं की गई है. जबकि, सुरक्षा के लिहाज से इस क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं में कोबरा बाइटिंग को लेकर एंटी वेनम व्यवस्था किया जाना भी जरूरी है.

बताना जरूरी है कि किंग कोबरा के जहर में एक वयस्क हाथी को चंद मिनटों में मान गिराने की क्षमता होती है. एक्सपर्ट की मानें तो 0.01 मिलीग्राम जहर प्रति किलो के हिसाब से पर्याप्त माना जाता है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यदि किसी इंसान को ये सांप डस ले तो मात्र कुछ ही सेकंडों में उसकी जीवनलीला खत्म हो सकती है.

जिस साइज में ये किंग कोबरा पाया गया है, जाहिर है कि क्षेत्र में ये प्रजाति भली भांति फल फूल रही है. क्योंकि एक मादा एक बार में 21 से 40 अंडे देती है. इससे भी बड़ी खासियत ये है कि मादा कोबरा सूखा घोंसला बनाकर 90 दिन तक अंडों को सेती है.

कहा जा सकता है कि क्षेत्र में किंग कोबरा न केवल एक है, बल्कि इनकी संख्या काफी अधिक हो सकती है. ये इस बात से भी साबित हो जाता है कि 10 फीट लंबे किंग कोबरा को अपना आकार बनाने और इस स्थिति तक पहुंचने में कई वर्ष लगे होंगे. हालांकि, ये स्पष्ट नहीं हो पाया है कि 14 मार्च को रेस्क्यू किया गया किंग कोबरा मादा थी या नर. जाहिर है कि किंग कोबरा के नर होने की स्थिति में इसके आसपास मादा भी हो सकती है और क्षेत्र में इस प्रजाति की संख्या भी ज्यादा हो सकती हैं, जो वाइल्ड लाइफ के लिए भी अच्छी खबर है.

शुभ संकेत ये भी माना जा सकता है कि इसकी उपस्थिति न केवल क्षेत्र बल्कि यहां साथ लगते सिंबलबाड़ा नेशनल पार्क की जैव विविधता में ये फायदेमंद साबित होगा. ये विशैले और गैर विशैले सांपों की आबादी को नियंत्रण करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

किंग कोबरा की बड़ी खुराक अन्य प्रजातियों के सांप होते हैं, जबकि इसका प्रिय आहार चूहे माने जाते हैं. संभवतया, गेहूं की खेत में किंग कोबरा का मिलना इस बात की पुष्टि करता है. ऐसे में अब ये जरूरी हो गया है कि मानवीय उत्पीड़न का शिकार माने जाने वाली इस प्रजाति के लिए क्षेत्र में न केवल जागरुकता जरूरी है, बल्कि इस सांप से लोगों की सुरक्षा को लेकर स्वास्थ्य संबंधी इंतजाम करना भी जरूरी हो गया है.

हिमाचल प्रदेश फोरेस्ट कार्पोरेशन के डायरेक्टर एवं एक्स्पर्ट वाइल्ड लाइफ कृष्ण कुमार बताते हैं कि किंग कोबरा का बार-बार देखा जाना और पहली बार इतने विशालकाय कोबरा का रेस्क्यू होना इस बात का भी संकेत है कि यहां पहले से ही इस प्रजाति की उपस्थिति है और वह फिलहाल संरक्षित हैं. अभी किंग कोबरा लोगों की नजर से दूर है. क्योंकि यदि ये मानवीय आबादी में ज्यादा चहल पहल करता है तो लोग डर से इसे मार भी सकते हैं. किंग कोबरा बार-बार इसलिए भी नजर आ रहा है क्योंकि अब सोशल मीडिया का जमाना है और हर किसी के हाथ में मोबाइल हैं.

बता दें कि इस किंग कोबरा का जहर पोस्टसिनेष्टिक न्यूरोॉक्सिन है, जो बहुत ही ज्यादा खतरनाक और जानलेवा है. चूंकि, सांप के काटे का इलाज उसी प्रजाति के सांप जहर ही इलाज है. ऐसे में जिला सिरमौर के स्वास्थ्य विभाग के पास किंग कोबरा के एंटी वेनम होना भी जरूरी हो गया है.

सुरक्षित व संरक्षित किंग कोबरा की जानकारी मिलने के बाद वाइल्ड लाइफ पर्यटन की संभावनाएं भी क्षेत्र में तेज हो जाती हैं क्योंकि वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर और वाइल्ड लाइफ से जुड़ी प्रजातियों पर रिसर्ज करने वाले पर्यटकों का भी इस क्षेत्र की ओर ध्यान आकर्षित हो चुका है. ऐसे में ये किंग कोबरा जिला सिरमौर के लिए वाइल्ड लाइफ पर्यटन की नई संभावनाएं लेकर नजर आया है.

गौर हो कि 14 मार्च 2025 को कोटड़ी ब्यास पंचायत के ब्यास गांव में गेहूं के एक खेत से रेंजर सुरेंद्र शर्मा, वन रक्षक वीरेंद्र शर्मा, विंकेश चौहान, स्नैक कैचर भूपेंद्र सिंह ने घंटों की मशक्कत के बाद किंग कोबरा को सुरक्षित रेस्क्यू कर उसे जंगल में छोड़ दिया गया.