
सबाथू : प्रसिद्ध भूविज्ञानी और टेथिस फॉसिल म्यूजियम के संस्थापक डॉ. रितेश आर्या ने हिमाचल प्रदेश की सबाथू संरचना (Subathu Formation) से लगभग 4.5 करोड़ वर्ष पुरानी स्नेकहेड मछली की खोपड़ी (Snakehead Fish Skull) की खोज की है।
यह उल्लेखनीय खोज मीठे पानी की मछलियों के विकास और टेथिस सागर के भूवैज्ञानिक इतिहास को समझने में नई दिशा प्रदान करती है।
डॉ. आर्या ने यह जीवाश्म एक छोटी धारा में खोजा, जो सबाथू संरचना की परतों को काटते हुए बहती है। ये अवसादी चट्टानें उस काल की हैं, जब टेथिस सागर धीरे-धीरे समाप्त हो रहा था और भारत अफ्रीका से अलग होकर गोंडवाना भूभाग का हिस्सा बनते हुए एशिया से टकराने की दिशा में अग्रसर था। उस समय तक हिमालय पर्वतों का निर्माण नहीं हुआ था और पूरी धरती पर टेथिस महासागर का प्रभुत्व था।
समुद्री अवसादों में मीठे पानी की मछली का मिलना यह सिद्ध करता है कि सबाथू की ये परतें इयोसीन युग (Eocene) में एक उथले समुद्री वातावरण में बनी थीं। यह खोज उस संक्रमणकालीन पारिस्थितिकी तंत्र की झलक देती है, जब भारत उत्तर की ओर बढ़ते हुए महाद्वीपीय परिस्थितियों में परिवर्तित हो रहा था।
इस जीवाश्म की पहचान पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के भूविज्ञान विभाग के प्रो. राजीव पत्नायक ने इसे स्नेकहेड फिश (Snakehead Fish) के रूप में की, जो Channidae परिवार से संबंधित है।
प्रो. अशोक साहनी, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रख्यात कशेरुकी जीवाश्म विशेषज्ञ ने कहा कि यद्यपि पहले भी सबाथू से मछलियों के जीवाश्मों की सूचना मिली है, लेकिन डॉ. आर्या द्वारा की गई यह खोज अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो हिमालय की तराइयों में मीठे पानी की मछलियों के प्रारंभिक विकास का मूल्यवान प्रमाण प्रदान करती है।
पूर्ववर्ती अध्ययनों ने भी इस बात पर बल दिया है कि सबाथू संरचना हिमालय के उत्थान के दौरान समुद्री से महाद्वीपीय पारिस्थितिक तंत्र में हुए परिवर्तन को दर्ज करती है। यह नई खोज उन सभी अध्ययनों से जुड़कर भारत के भूवैज्ञानिक और जैविक विकास की कहानी में एक महत्वपूर्ण कड़ी जोड़ती है।
डॉ. रितेश आर्या 1988 से जीवाश्म एकत्र कर रहे हैं। उस समय वे पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के भूविज्ञान विभाग में स्नातक विद्यार्थी थे। कसौली और आसपास के क्षेत्रों से उनके द्वारा खोजे गए जीवाश्मों में गैस्ट्रोपोड, बाइवाल्व, शार्क और व्हेल शामिल हैं।
ये खोजें लोकप्रिय विज्ञान धारावाहिकों ‘Turning Point’ और ‘सुरभि’ में भी प्रदर्शित की गई थीं। ये सभी जीवाश्म अब टेथिस फॉसिल म्यूजियम, डंगयारी (धर्मपुर-सबाथू रोड़) में प्रदर्शित हैं।
डॉ. आर्या लगातार यह मांग कर रहे हैं कि कसौली और आसपास के क्षेत्रों को एक जियोपार्क घोषित किया जाए, ताकि इन अमूल्य जीवाश्मों को संरक्षित किया जा सके और क्षेत्र में भू-पर्यटन (Geotourism), शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा मिले।
वर्तमान में इस जीवाश्म का विस्तृत अध्ययन किया जा रहा है और इसके निष्कर्ष शीघ्र ही प्रकाशित किए जाएंगे। यह जीवाश्म टेथिस फॉसिल म्यूजियम में प्रदर्शित किया जाएगा, जहां इसे शीघ्र ही आम जनता के लिए खोला जाएगा।






