
नाहन : प्रसिद्ध लेखक डॉ. दीनदयाल वर्मा द्वारा रचित व्यंग्य संग्रह “यहां जंगल होते थे” का विमोचन रविवार को फ्रेंड्स ऑफ फॉरेस्टस (पंजीकृत) जिला सिरमौर के अध्यक्ष डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा ने किया।
डॉ. वर्मा स्वयं फॉरेस्ट्री में पीएचडी के साथ-साथ सेवानिवृत्त वन मंडल अधिकारी और एक स्थापित साहित्यकार भी हैं, जिनके कई कहानी संग्रह और रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं।
इस अवसर पर डॉ. प्रदीप शर्मा ने डॉ. दीनदयाल वर्मा की लेखन प्रतिभा की सराहना करते हुए कहा कि उनका लेखन समग्र रूप से आकर्षित और प्रभावित करता है। उन्होंने बताया कि डॉ. वर्मा कहानी, व्यंग्य, संस्मरण, यात्रा-वृत्त और कविता आदि साहित्य की अनेक विधाओं में पारंगत हैं।
उन्होंने टिप्पणी की कि इस नए संग्रह “यहां जंगल होते थे” के सभी व्यंग्य पैने और चुटीले हैं, जो साहित्य को बहुमूल्य, प्रेरक और सार्थक सामग्री दे रहे हैं।
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पुस्तक के आवरण को जाने-माने चित्रकार दीप राज विश्वास ने तैयार किया है, जबकि इसका संपादन डॉ. प्रदीप शर्मा और दीप राज विश्वास ने मिलकर किया है।
लेखक डॉ. दीनदयाल वर्मा अपने लेखन में किसी एक ही वाद का सहारा नहीं लेते, बल्कि अपने मन के भावों को विभिन्न रंगों में पेश करने का हुनर रखते हैं।
एक पूर्व वन अधिकारी होने के कारण प्रकृति एवं पर्यावरण के प्रति उनका विशेष प्रेम उनकी हर रचना में झलकता है। वह अपनी भावनाओं और अनुभवों को व्यक्त करने के लिए कभी आत्मकथ्य, कभी काव्यात्मक तो कभी व्यंग्यात्मक शैली अपनाते हैं।
इस संग्रह में लेखक ने जहां सर्दी-जुकाम और दफ्तर के माहौल जैसे दैनिक जीवन के साधारण प्रसंगों को व्यंग्य में ढाला, वहीं अग्निवीर जैसी सरकारी योजनाओं पर भी व्यंग्यात्मक चोट की है।
संग्रह का शीर्षक “यहां जंगल होते थे” अवैध वृक्ष कटान, खनन और बादल फटने की भयानक स्थिति पर पाठकों को व्यंग्यात्मक रूप से विचार करने को विवश करता है। वहीं, “जब अतिथि आते थे” के माध्यम से पुराने दिनों की मेहमान नवाजी की याद भी दिलाई गई है।
लेखक का मानना है कि जीवन को व्यंग्य की नज़र से देखने पर नज़रिया बदल जाता है और एक नई ऊर्जा का संचार होता है। उनका यह भी कहना है कि एक सच्चे व्यंग्यकार को स्वयं पर भी व्यंग्य कर पाने में समर्थ होना चाहिए।
यह डॉ. वर्मा की चौदहवीं पुस्तक है। उनका पहला व्यंग्य संग्रह “सांसों की सरकार” वर्ष 2018 में आया था।






