
दरअसल, शहद बनाने की प्रक्रिया फूलों पर जाकर शुरू होती है, जहां श्रमिक मधुमक्खियां अपनी लंबी जीभ से फूलों के मीठे रस यानी अमृत को चूसती हैं और इसे अपने पेट के विशेष हिस्से जिसे ‘शहद पेट’ कहा जाता है, में जमा करती हैं।
इस दौरान उनके लार ग्रंथियों से निकले एंजाइम अमृत में मिल जाते हैं, जो जटिल चीनी (सुक्रोज) को सरल चीनी जैसे ग्लूकोज और फ्रुक्टोज में तोड़ना शुरू कर देते हैं।
छत्ते में लौटने पर मधुमक्खी इस तरल को दूसरी मधुमक्खी के मुंह में उगलती है और कई मधुमक्खियां मिलकर इसे बार-बार मुंह से निकालकर इसमें मौजूद अतिरिक्त पानी को हटाती हैं। इसके बाद छत्ते के अंदर मौजूद मधुमक्खियां अपने पंखों को तेजी से फड़फड़ाती हैं, जिससे तरल की नमी वाष्पित होकर 18 फीसदी से भी कम रह जाती है।
नमी की यह कमी और रासायनिक रूपांतरण पूरा होने पर तरल गाढ़ा होकर असली शहद बन जाता है, जिसे वे मोम के छत्ते की षट्कोणीय कोशिकाओं में भर देती हैं। अंत में शहद को सुरक्षित और नमी से बचाने के लिए मधुमक्खियां मोम की एक पतली परत से इन कोशिकाओं को सील कर देती हैं।
शहद बनाने के पीछे का कारण
मधुमक्खियों के शहद बनाने के पीछे का मुख्य कारण भोजन का भंडारण है। शहद उनके अस्तित्व के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत है। मधुमक्खियां फूलों के खिलने के मौसम में, जब अमृत (Nectar) आसानी से उपलब्ध होता है, तो उसे इकट्ठा करके शहद बनाती हैं।
शहद बनाने के पीछे का प्राथमिक उद्देश्य किसी भी जीव की तरह ही भविष्य की खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करना है। जब सर्दी या बरसात का मौसम आता है या किसी कारणवश फूल नहीं खिलते हैं तो मधुमक्खियां छत्ते से बाहर जाकर अमृत इकट्ठा नहीं कर पातीं।
ऐसे समय में छत्ते में जमा किया गया शहद ही उनके और उनके बच्चों (लारवा) के लिए एकमात्र पोषण और ऊर्जा का स्रोत होता है। शहद में पानी की मात्रा कम होती है और यह चीनी से भरपूर होता है, जिससे यह लंबे समय तक बिना खराब हुए सुरक्षित रहता है। यह उनके लिए एक प्रकार का प्राकृतिक संरक्षित खाद्य भंडार है।
मधुमक्खियां शहद इसलिए बनाती हैं, ताकि वे और उनका पूरा समूह (कॉलोनी) प्रतिकूल परिस्थितियों में जब बाहर कोई भोजन उपलब्ध न हो, आसानी से जीवित रह सके। यह उनके लिए जीवन रक्षक भंडार और उनकी कॉलोनी की निरंतरता की गारंटी है।
मधुमक्खी छत्ता कैसे बनाती हैं?
मधुमक्खी का छत्ता केवल शहद जमा करने का भंडार नहीं है, बल्कि यह एक प्राकृतिक वास्तुशिल्प चमत्कार है जो पूरी तरह से मधुमक्खियों के श्रम और शरीर विज्ञान पर आधारित है।
छत्ता बनाने की पूरी प्रक्रिया एक व्यवस्थित और जटिल इंजीनियरिंग का उदाहरण है, जो मुख्य रूप से श्रमिक मधुमक्खियों द्वारा की जाती है।
सबसे पहले छत्ता बनाने के लिए आवश्यक सामग्री, यानी मोम का उत्पादन होता है। मोम बनाने वाली मधुमक्खियां अपने पेट के निचले हिस्से में स्थित विशेष मोम ग्रंथियों का उपयोग करती हैं।
इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए मधुमक्खियां सबसे पहले बड़ी मात्रा में शहद का सेवन करती हैं, क्योंकि मोम के उत्पादन के लिए अत्यधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। शहद खाने के बाद इन ग्रंथियों से मोम छोटे, पतले, सफेद पपड़ी के रूप में बाहर निकलता है।
इसके बाद श्रमिक मधुमक्खियां अपने पैरों और जबड़ों का उपयोग करके इन मोम की पपड़ियों को उठाती हैं। वे इसे अच्छी तरह से चबाती हैं और अपनी लार के साथ मिलाकर इसे एक मुलायम और चिपचिपी निर्माण सामग्री में बदल देती हैं।
इस मुलायम मोम से ही वे छत्ते की कोशिकाओं का निर्माण करती हैं। छत्ते की सबसे उल्लेखनीय विशेषता उसकी ज्यामिति है। मधुमक्खियां हमेशा एकदम सटीक छह कोनों (षट्कोणीय) वाले आकार में कोशिकाओं का निर्माण करती हैं। गणितीय रूप से यह आकार सबसे कुशल माना जाता है।
यह कम से कम मोम का उपयोग करके अधिकतम भंडारण क्षमता प्रदान करता है। संरचना को अत्यधिक मजबूत बनाता है और कोशिकाओं के बीच कोई खाली जगह नहीं छोड़ता।
इस प्रकार तैयार किए गए छत्ते का उपयोग मधुमक्खियां कई महत्वपूर्ण कार्यों के लिए करती हैं, जैसे कि फूलों के अमृत से बने शहद का भंडारण, बच्चों (लारवा) के भोजन के रूप में पराग को जमा करना और रानी मधुमक्खी द्वारा अंडे देने व बच्चों के पालन-पोषण (ब्रूडिंग) के लिए सुरक्षित स्थान बनाना।
ऐसे करें असली शहद की पहचान
बाजार में बिकने वाले कई शहद में शक्कर की चाशनी, मक्के का सिरप या पानी मिलाया जाता है। असली शहद की पहचान के लिए कुछ सरल घरेलू तरीके अपनाए जा सकते हैं।
उदाहरण के लिए एक गिलास पानी में एक चम्मच शहद डालने पर असली शहद नीचे तली में बैठ जाएगा और आसानी से नहीं घुलेगा, जबकि नकली शहद तुरंत घुल जाता है। इसी तरह अंगूठे पर डालने पर शुद्ध शहद गाढ़ा बना रहेगा और बहेगा नहीं।
आग से टेस्ट करने पर माचिस की तीली को शहद में डुबोकर जलाने पर शुद्ध शहद अपनी कम नमी के कारण आसानी से जल जाता है, जबकि मिलावटी शहद नमी के कारण जलने में मुश्किल पैदा करता है।
शहद के अनमोल स्वास्थ्य लाभ
शहद को न केवल स्वाद के लिए, बल्कि इसके औषधीय गुणों के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। इसके एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों के कारण यह रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक है।
यह एक बेहतरीन कफ सप्रेसेंट है और खांसी और गले की खराश में तुरंत राहत देता है। इसमें मौजूद एंटी-माइक्रोबियल गुण इसे घाव भरने में भी सहायक बनाते हैं।
ग्लूकोज और फ्रुक्टोज के रूप में यह ऊर्जा का प्राकृतिक स्रोत है। सुबह गुनगुने पानी और नींबू के साथ शहद का सेवन वजन प्रबंधन में भी मददगार माना जाता है।






