मन की आंखों से बनाई राह और फतह कर दी दुनिया की सबसे ऊंची चोटी ‘माउंट एवरेस्ट’, बनीं पहली दृष्टिबाधित महिला

छोंजिन अंगमो पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर हैं। जब वह तीसरी कक्षा में थीं, तब 8 साल की उम्र में एक दवा से एलर्जी के कारण उनकी आंखों की रोशनी प्रभावित हो गई। परिवार ने इलाज के लिए शिमला, चंडीगढ़ और देहरादून तक की दौड़ लगाई, लेकिन राहत नहीं मिली।

0

रिकांगपिओ : हिमाचल प्रदेश के दुर्गम क्षेत्र किन्नौर जिले की हंगरंग घाटी के चांगो गांव की बेटी छोंजिन आंगमो माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली भारत की पहली दृष्टिबाधित पर्वतारोही बन गई हैं।

29 वर्षीय दृष्टिबाधित पर्वतारोही आंगमो ने 19 मई 2025 की सुबह 8:34 बजे एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया। अभियान दल में उनके साथ दांडू शेरपा, ओम गुरुंग और टीम लीडर रिटायर्ड लेफ्टिनेंट कर्नल रोमिल बर्थवाल शामिल रहे।

छोंजिन अंगमो पांच भाई-बहनों में दूसरे नंबर पर हैं। जब वह तीसरी कक्षा में थीं, तब 8 साल की उम्र में एक दवा से एलर्जी के कारण उनकी आंखों की रोशनी प्रभावित हो गई। परिवार ने इलाज के लिए शिमला, चंडीगढ़ और देहरादून तक की दौड़ लगाई, लेकिन राहत नहीं मिली।

2006 में पिता अमर चंद और माता सोनम छोमो ने अंगमो को महाबोधि इंटरनेशनल मेडिटेशन सेंटर की ओर से संचालित लेह के महाबोधि स्कूल और दृष्टिबाधित बच्चों के छात्रावास में दाखिला दिलाया। चंडीगढ़ से 11वीं और 12वीं करने के बाद में उन्होंने दिल्ली के मिरांडा हाउस कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की।

2016 में मनाली स्थित अटल बिहारी वाजपेयी पर्वतारोहण संस्थान से आंगमो ने अपना पहला बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स किया और फ्रेंडशिप पीक (5,289 मीटर) पर चढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने लद्दाख की कई चोटियों पर चढ़ाई की और 2021 में ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम में हिस्सा लिया।

उनकी प्रेरणा स्केलजेंग रिग्ज़िन रहे, जिन्होंने उन्हें कांग यात्से-2 (6,250 मीटर) पर चढ़ते देखा और उनके जुनून की सराहना की। एवरेस्ट फतह से पहले उन्होंने माउंट लोबुचे (6,119 मीटर) और फिर कैंप 1 से कैंप 4 तक का अनुकूलन चक्र पूरा किया।

उनकी इस यात्रा में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया का महत्वपूर्ण योगदान रहा, जिसने इस अभियान को प्रायोजित किया। खुद भी बैंक की कर्मचारी आंगमो ने कहा कि यह उनके सपनों को साकार करने में एक निर्णायक कदम रहा।

उनकी चढ़ाई के दौरान रास्ता दिखाने के लिए टीम ने विशेष साइनेज और ट्रेक पोल तकनीक का इस्तेमाल किया, जिससे वह अपने पैर सटीक जगह पर रख सकें। उनके भाई लामा कर्मा येशे, जो बैजनाथ के शेरबलिंग मठ में भिक्षु हैं। इस दौरान वह लगातार उनकी सफलता के लिए प्रार्थना में लीन रहे।