रामगढ़, जैसलमेर : विश्व की प्राचीनतम नगरीकृत सभ्यता मानी जाने वाली सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित संभावित अवशेष थार मरुस्थल में पाए जाने की संभावना ने इतिहासकारों और पुरातत्वविदों के बीच एक नई हलचल पैदा कर दी है।
जैसलमेर जिले की रामगढ़ तहसील के सीमावर्ती गांव साधेवाला के रातड़िया तला क्षेत्र में हुए हालिया अन्वेषण में ऐसे साक्ष्य मिले हैं, जो हड़प्पाकालीन नगर की ओर इशारा कर रहे हैं।
यह खोज भोजराज की ढाणी, राउमा विद्यालय में कार्यरत वरिष्ठ अध्यापक और सीमाजन कल्याण समिति के जिला उपाध्यक्ष प्रदीप कुमार गर्ग ने की है। उन्होंने इस स्थल पर प्राप्त ऐतिहासिक अवशेषों की जानकारी Save Our Heritage Foundation और प्रख्यात इतिहासकारों को दी।
इसके उपरांत हिमाचल प्रदेश में इतिहास विभाग के सहायक आचार्य डॉ. पंकज चांडक (जिनकी पुस्तक “An Introduction to Archaeology” पुरातत्वशास्त्र का महत्वपूर्ण ग्रंथ है) और अरावली महाविद्यालय सुमेरपुर के प्राचार्य डॉ. कृष्णपाल सिंह ने जून माह में इस स्थल का निरीक्षण किया।
इन साक्ष्यों के आधार पर डॉ. पंकज चांडक और डॉ. कृष्णपाल सिंह ने अनुमान लगाया कि यह स्थल एक सुव्यवस्थित, आर्थिक व सामाजिक दृष्टि से विकसित हड़प्पाकालीन नगरी रहा होगा। विलुप्त सरस्वती नदी की मुहाने पर यह स्थल स्थित होगा, जिसका क्षेत्रफल लगभग 50×50 मीटर के आसपास रहा होगा।
प्रदीप गर्ग, डॉ. पंकज चांडक और डॉ. केपी सिंह का मानना है कि यदि इस क्षेत्र में गहन पुरातात्विक सर्वेक्षण किया जाए तो और भी स्थल सामने आ सकते हैं। संभावना ये भी जताई गई है कि सरस्वती नदी की विलुप्त जलधारा, जिसका उल्लेख ऋग्वैदिक ग्रंथों में मिलता है, उसे भी इस क्षेत्र में पुनः खोजा जा सकता है।
इन्हीं संभावनाओं की पुष्टि के लिए 29 जुलाई 2025 को प्रख्यात पुरातत्वविद डॉ. जीवनलाल खडगवाल के नेतृत्व में एक सर्वेक्षण टोली साधेवाला गांव पहुंची। वहीं, जल संरक्षणकर्ता चतर सिंह जाम और स्थानीय शिक्षक भूरसिंह जाम ने मार्गदर्शक की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इतिहासकार डॉ. पंकज चांडक ने कहा कि प्रदीप गर्ग की यह खोज राजस्थान के प्रागैतिहासिक अध्ययन में एक नई दिशा प्रदान करेगी और यदि प्रमाण पुष्ट होते हैं तो यह स्थल न केवल थार मरुस्थल, बल्कि संपूर्ण भारत के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर सकता है।