नाहन कालेज में भू-स्थानिक तकनीक पर ISRO की कार्यशाला, भूगोल के विद्यार्थियों ने दिखाई रुचि

वक्ताओं ने बताया कि कैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), मशीन लर्निंग (ML), गूगल अर्थ इंजन, पायथन और आधुनिक GIS प्लेटफॉर्म धरती से प्राप्त चित्रों के विश्लेषण की प्रक्रिया को वास्तविक जीवन के निर्णयों के लिए क्रांतिकारी ढंग से बदल रहे हैं।

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नाहन : PG कॉलेज नाहन के भूगोल विभाग ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान देहरादून के सहयोग से “भू-स्थानिक पेशेवरों हेतु उन्नत छवि विश्लेषण” विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया।

कार्यशाला का उद्देश्य प्रतिभागियों को सुदूर संवेदन और भौगोलिक सूचना प्रणाली के नवीनतम अनुप्रयोगों का प्रशिक्षण देना था, जो आज राष्ट्रीय व वैश्विक स्तर पर अनुसंधान, योजना और सतत विकास के अग्रिम क्षेत्रों में गिने जाते हैं। इस आयोजन में भूगोल के 121 विद्यार्थी व विभिन्न विभागों के प्राध्यापकों ने भाग लिया।

बता दें कि नाहन कॉलेज को IIRS-ISRO आउटरीच प्रोग्राम्स का सक्रिय नोडल सेंटर घोषित किया गया है। इससे विद्यार्थियों को इसरो वैज्ञानिकों से सीधा संवाद, लाइव सत्रों में भागीदारी और भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों की नवीनतम जानकारी प्राप्त करने का अवसर मिलेगा। कार्यशाला के तकनीकी सत्रों में आईआईआरएस-इसरो देहरादून के प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों ने विविध विषयों पर व्याख्यान प्रस्तुत किए।

वक्ताओं ने बताया कि कैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), मशीन लर्निंग (ML), गूगल अर्थ इंजन, पायथन और आधुनिक GIS प्लेटफॉर्म धरती से प्राप्त चित्रों के विश्लेषण की प्रक्रिया को वास्तविक जीवन के निर्णयों के लिए क्रांतिकारी ढंग से बदल रहे हैं।

भूगोल विभाग के सहायक प्राध्यापक एवं IIRS-ISRO आउटरीच प्रोग्राम के समन्वयक डॉ. जगदीश चंद ने कहा कि यह कार्यशाला विभाग की उस प्रतिबद्धता को दर्शाती है, जिसमें कक्षा अधिगम को वास्तविक जीवन की चुनौतियों से जोड़ने के लिए अनुभवात्मक अधिगम, डिजीटल तकनीकों और सामुदायिक सहभागिता को महत्व दिया गया है।

उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि IIRS-ISRO के साथ ऐसे सहयोग विद्यार्थियों को सुदूर संवेदन एवं भौगोलिक सूचना प्रणाली, भू-सूचना विज्ञान, पर्यावरण प्रबंधन और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में करियर बनाने के लिए प्रेरित करेंगे।

अध्यक्षीय संबोधन में महाविद्यालय के कार्यवाहक प्राचार्य डॉ. देवराज शर्मा ने भूगोल विभाग की इस दूरदर्शी पहल की सराहना करते हुए कहा कि ऐसी गतिविधियां न केवल शैक्षणिक गुणवत्ता को बढ़ाती हैं, बल्कि सतत विकास, जलवायु अनुकूलन और वैश्विक स्तर के कौशल निर्माण में भी योगदान देती हैं।

कार्यक्रम में विद्यार्थियों, शोधार्थियों व युवा भूगोलविदों ने सक्रिय रूप से भाग लिया और क्षेत्रीय योजना, कृषि, पर्यटन, पर्यावरण अध्ययन व आपदा प्रबंधन जैसे विषयों में भू-स्थानिक तकनीकों के उपयोग में गहरी रुचि दिखाई।

इस अवसर पर डॉ. रवि कांत शर्मा, डॉ. जय चंद, प्रो. सुदेश शर्मा और डॉ. अनुप कुमार भी मौजूद रहे। कार्यक्रम का समापन भूगोल विभाग के डॉ. जगपाल तोमर ने किया।