धौलाकुआं : कृषि विज्ञान केंद्र सिरमौर (धौलाकुआं) ने धान की फसल में काली धारीदार बौना विषाणु (वायरस) के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए किसानों के लिए एडवाइजरी की है। केंद्र में तैनात विषयवाद विशेषज्ञ पादप रोग डॉ. शिवाली धीमान ने बताया कि यह विषाणु विशेष रूप से निचले और मध्य-पहाड़ी क्षेत्रों में एक गंभीर खतरे के रूप में उभरा है।
इस वर्ष सिरमौर जिले की पांवटा साहिब घाटी के टोका नंगला, केदारपुर, जमानी वाला, सूरजपुर, नवादा, मिश्रवाला, फतेहपुर, कोलर और धौलाकुआं जैसे कई स्थानों सहित प्रमुख धान उत्पादक क्षेत्रों से इसके प्रकोप की सूचना मिली है।
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डॉ. शिवाली ने बताया कि यह रोग पौधों की वृद्धि को रोकता है और यदि इसका उचित प्रबंधन नहीं किया गया तो फसल को भारी नुकसान हो सकता है। उन्होंने बताया कि इस वायरस का फैलाव व्हाइटबैक्ड प्लांटहॉपर द्वारा होता है, जो एक कीट है।
इस कीट को पारदर्शी अग्रपंखों, गहरे रंग की शिराओं और पंखों के जोड़ों पर एक विशिष्ट सफेद पट्टी से पहचाना जा सकता है। संक्रमित पौधों की ऊंचाई सामान्य से एक-तिहाई या आधी हो जाती है और पत्तियां सीधी व संकरी हो जाती हैं और टहनियों का विकास रुक जाता है।
डॉ. शिवाली के मुताबिक वायरस का अत्यधिक होने पर पौधे समय से पहले मर सकते हैं। इससे उपज में और गिरावट आ सकती है। उन्होंने किसानों को सलाह दी कि वे अपने खेतों की नियमित रूप से निगरानी करें। धान के पौधों के आधार को धीरे से झुका सकते हैं और थपथपा सकते हैं। यदि कीट के शिशु या वयस्क मौजूद हैं, तो उन्हें पानी की सतह पर तैरते हुए आसानी से देखा जा सकता है।
विशेषज्ञ ने कहा कि कीट का पता चलने पर किसानों को तुरंत कृषि विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग के दिशा निर्देशों अनुसार किसी भी अनुशंसित कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए। इनमें इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. यानी 0.5 मिली/लीटर पानी, फिप्रोनिल 5 एस.सी. यानी 2 मिली/लीटर, डाइनोटेफ्यूरान 20 एस.जी. यानी 0.4 ग्राम/लीटर या फ्लोनिकैमिड 50 डब्ल्यू.जी. यानी 0.3 ग्राम/लीटर शामिल हैं। बेहतर कवरेज के लिए स्प्रे को पौधों के आधार पर उपयुक्त नोजल जैसे फ्लैट-फैन या खोखले-शंकु का उपयोग करके छिड़काव किया जाना चाहिए।
यदि आवश्यक हो तो छिड़काव को 15 दिनों के बाद दोहराया जा सकता है। उन्होंने किसानों को सतर्क रहने, कीटों की आबादी को नियंत्रित करने और अपनी धान की फसलों को और अधिक नुकसान से बचाने के लिए तुरंत कार्रवाई करने की सलाह दी। तकनीकी सहायता के लिए किसान कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर सकते हैं।