न केवल रेशम, यहां पतंग की डोर भी जोड़ती है भाई-बहन का पवित्र रिश्ता, रियासत काल से चली आ रही परंपरा

जब एक व्यक्ति दूसरे की पतंग काट देता था, तो "बोलो बे छोकरो काटे ओये" का जुमला बोला जाता था। यह जुमला पतंगबाजी की परंपरा की तरह ही बहुत पुराना है, जो आज भी काफी मशहूर है।

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नाहन : ऐतिहासिक शहर नाहन में शनिवार को रक्षा बंधन का पर्व हर वर्ष की तरह एक अनोखे तरीके से मनाया गया। इस पर्व पर जहां देश के बाकी हिस्सों में भाई अपनी बहनों से राखी बंधवाकर उनकी रक्षा का वचन लेते हैं, वहीं 1621 में बसे नाहन में रक्षाबंधन मनाने का अंदाज थोड़ा हटकर है।

यहां भाई-बहन के इस पवित्र रिश्ते में रेशम की डोरी के साथ-साथ पतंग की डोरी का भी विशेष महत्व है। शहर के लोग इस दिन का बड़ा बेसब्री से इंतजार करते हैं। ये दिन न केवल युवाओं के लिए खास है, बल्कि बुजुर्ग भी इसका हिस्सा बनते हैं।

सबसे अहम बात ये है कि यहां पतंगबाजी के दौरान आपसी भाईचारे की मिसालें भी देखने को मिलती हैं, जिसमें हिंदू, मुस्लिम और सिख सभी लोग मिलकर पतंग उड़ाते हैं। इस पर्व पर दिनभर शहर का आसमान रंग बिरंगी पतंगों से पटा रहा। कई जगह डीजे की धुनों पर इस पर्व को यादगार बनाया गया।

रियासत काल से चली आ रही है अनोखी परंपरा
नाहन शहर में रक्षा बंधन के अवसर पर पतंग उड़ाने की परंपरा सदियों पुरानी है, जो आज भी कायम है। यह आज भी लोगों के दिलों में बसी हुई है। इस दिन पहले भाई अपनी बहनों से राखी बंधवाते हैं और फिर घरों की छतों पर जाकर पतंग उड़ाते हैं।

इस दौरान बहनें भी अपने भाइयों का सहयोग करने के लिए छतों पर नजर आती हैं। बुजुर्गों का कहना है कि वे अपने बचपन से जवानी तक रक्षा बंधन पर पतंग उड़ाते रहे हैं और उनसे पहले उनके दादा-परदादा भी यही करते थे।

अब पतंगबाजी सिर्फ रक्षा बंधन तक सिमटी
बुजुर्गों के अनुसार पिछले चार दशकों की तुलना में अब पतंगबाजी दो-तीन महीने की बजाय केवल रक्षा बंधन के दिन तक ही सिमट कर रह गई है। पहले यह दो महीने पहले ही शुरू हो जाती थी और युवक बाज़ार की डोर की जगह मांजे से बनी सूती डोर का इस्तेमाल करते थे। आधुनिक दौर में पतंगबाजी का चलन भी बदला है।

“बोलो बे छोकरो काटे ओये” का जुमला आज भी मशहूर
बता दें कि जब सिरमौर जिला एक रियासत था, तब वहां के राजा भी रक्षा बंधन पर पतंगबाजी करते थे। उस समय पतंगबाजी की प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती थीं। जब एक व्यक्ति दूसरे की पतंग काट देता था, तो “बोलो बे छोकरो काटे ओये” का जुमला बोला जाता था। यह जुमला पतंगबाजी की परंपरा की तरह ही बहुत पुराना है, जो आज भी काफी मशहूर है।