यहां मड़ेगो के साथ शुरू हुआ दिवाली का पांच दिवसीय पर्व, लजीज व्यंजनों से महकी घाटी

लोग अपने कुल देवता के मंदिर जाकर चावल और अखरोट की भेंट अर्पित करते हैं। दिवाली के पंच पर्व की परंपरा हमारी संस्कृति और सभ्यता की परिचायक है, जिसे लोगों ने आधुनिकता के इस दौर में भी संजोये रखा हुआ है।

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राजगढ़ : जिला सिरमौर के राजगढ़ इलाके में दीपावली का पांच दिवसीय पर्व मड़ेगो अर्थात मूड़ा व्यंजन के साथ शुरू हो गया है। यह त्योहार आगामी 23 अक्तूबर तक मनाया जाएगा। खास बात ये है कि दिवाली के पंच पर्व में प्रतिदिन भिन्न-भिन्न प्रकार के पारंपरिक पहाड़ी व्यंजन बनाए जाते हैं। इस दौरान पीठासीन देवताओं की विशेष पूजा की जाती है।

कोठिया जाजर पंचायत के पूर्व प्रधान कुशल तोमर, सुरेश कुमार, वरिष्ठ नागरिक दयाराम वर्मा, प्रीतम सिंह ठाकुर, दौलतराम मेहता सहित कई लोगों ने बताया कि दीपावली से दो दिन पूर्व मड़ेगों त्यौहार मनाया जाता है, जिसमें लोग अपने घरों में गेहूं, काले चने और राजमाह इत्यादि का मूड़ा बनाते हैं, जिसे अखरोट के साथ खाया जाता है।

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इसी प्रकार छोटी दिवाली को चावल के आटे की लजीज अस्कलियां बनाई जाती है, जिसे शक्कर घी, शहद, राजमाह और उड़द की दाल के साथ खाते हैं। अमावस्या अर्थात दिवाली पर्व पर लोग अपने घरों में पटांडे और खीर बनाते हैं। रात्रि को स्थानीय मंदिरों और घरों में दीपमाला करके लक्ष्मी की खील-पताशों से पूजा की जाती है।

तदोपंरात गांव के चौपाल में मक्की के टांडों का अलाव अर्थात दवालठा जलाने के बाद रात्रि को पीठासीन देवता के नाम पर घैना अर्थात अलाव जलाया जाता है, जहां पर लोग पूरी राम बैठ कर जागरण करते हैं। उन्होंने बताया कि दिवाली पर्व के दौरान शिरगुल देवता की जन्मस्थली शाया, गुरू इतवारनाथ मंदिर ठौड़ निवाड़, टोकरू टिंबा काली मंदिर हाब्बन सहित अनेक स्थानों पर मेले का आयोजन किया जाता है।

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दिवाली के अगले दिन पड़वा अर्थात गोवर्धन पूजा के अवसर पर किसान अपने मवेशियों को माला पहलनाकर पूजा व पेड़ियां खिलाई जाती हैं। पड़वा और भैया दूज के दिन अतीत से ही खिचड़ी बनाने की परंपरा है। किसान अपने औजार दराट, दराती, हल इत्यादि की पूजा करते हैं। लोग अपने कुल देवता के मंदिर जाकर चावल और अखरोट की भेंट अर्पित करते हैं। दिवाली के पंच पर्व की परंपरा हमारी संस्कृति और सभ्यता की परिचायक है, जिसे लोगों ने आधुनिकता के इस दौर में भी संजोये रखा हुआ है।

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